आत्म हत्या | Aatm Hatya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १७ ) “गुरुदेव छगभग साल भर हुआ है, मेरी शादी यहीं पास के गाव में हुई है। आज एक विशेप समस्या लेकर आपके चरणों में आई हूँ । विवाह होने के पश्चात्‌ लगभग दो माह वाद ही पतिदेव अपने माता-पिता से अछग होकर यहां [ इन्दोर ] चले आये ओर एक छोटा सा मकान किराये पर लेकर रहने ल्गे। इन्होंने बी० काम० और साहित्यरत्न की परिक्षाएं अच्छे नम्बरों से पास की किन्तु भाग्य की विडम्बना ही सममिये आज छः सात महीने दो गये मटकतते हुये कहीं भी नियति अनुकूल न बनी । इन्हें नौकरी नहीं मिली“ “कहते हुये सुधा की आँखों से दो वू दे टपक पड़ीं। आचल से आंखों को पोंछते हुये '* गुरुदेव इस कालावधि में इन्होंने कह बार आत्महत्या करने का विचार किया ओर में इन्हें रोकती रही ''' किन्तु कछ ये जीवन से पूरे निराश होकर लौटे, इन्होने अन्तिम निणय ले लिया कि अब में! इस क्रर संसार मे एक मिनट भी “1” सुधा का गला रुध गया'' आखों से अन्तरवंद्ना वरस पड़ी । नरेश की आखें भी छल्छुछा जाती है, दोनों अपना धंय खो बेठते हैं। आचाय श्री ने दोनों को आश्वास्त करते हुये कद्दा । धआप इतने अधीरन बनें, आप नीचे दया पाले (वंठ जाएं) में आपसे कुछ बातें करूंगा । सुधा और नरेश आचाय श्री के समक्ष शान्त भाष से बठ जाते है। दो मिनट की नीखता के पश्चात्त्‌ आचाय श्री जी ने मोन भंग करते हुए पूछा--“आपका शुभ नाम १ नरेश, जो आचाय श्री के जादूभरे व्यक्तित्व से गहरा




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