दिवाकर - रश्मियां | Diwakar - Rashmiyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
204
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भाघना ] . [ १७ ]
नही खाने देता , दूसरा आदमी द्वेषभाव से, किसी को भूखा
रख कर मार डालने के विचार से किसी की अन्न नही खामे
देता 1 मोटे तौर पर दोनों का काम समान्र मालूम होता है !
पर दोनो अन्न खबने से सेकने वालों की भावना में बडा अन्तर
है | एक जीवित रखने की भावना से रोकता है और दूसरा
मार डालसे की भावना से रोकता है। जब दोनो की भावषनाएँ
बिलकुल भिन्न-घिन्न है-एक दूससे से एकदम विपरीत है तो
क्या दोनों को समाच फल की प्राप्ति होगी ” चही, ऐसा कंदापि
नहीं हो सकता । प्रकृति के राज्य मे ऐसा अधेर नही है।
एजिसकी जेसी भावना होती है इसको वैसा ही फल प्राप्त होता
हैं । मृनिजन कल्याण-भावना से प्रेरित होकर, षाप कर्मों के
त्याग का उपदेश्न देते है श्रत्तएव उन्हे अन्तराय कर्म का चन्द्र
नही होता; वरन उपदेश देने से उनके पूर्वंचद्ध कर्मो की विर्जश
होती है 1
( ३ )
भावना के भेद से एक सरीखे काये के फल में भरे
महान श्रन्तर पड़ जाता है । अतएवं सच्चा ससझंदार और
पंडित वही है जो पापो थे डरकर अपनी भाववा की पवित्र
और पुण्णममय रखता है । अन्तःकरण में कंषाय को जागृत नही
डोने देता । कदाचित् कोई ससारिक फाये करना पड़ता है हो
भी यतत्रर रख कर अधिक पाप से बचने का प्रयत्व करवा है ।
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