ज्ञान चेतना के चार आयाम | Gyan Chetana Ke Char Aayam

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Gyan Chetana Ke Char Aayam by सम्पतराज रांका - Sampataraj Ranka

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ज्ञान चेतना के चार आयाम 19 हि - सामायिक में नियाणा (निदान) करे तो निदान दोष । संशय - फल में सन्देह रख कर सामायिक करे तो सशय दोष | रोष - सामायिक मे क्रोध, मान, माया,लोभ करे तो रोष दोष | अविनय - विनयपूर्वक सामायिक न करे तथा सामायिक में देव, गुरु, धर्म की अविनय-आशातना करे तो अविनय दोष | -. 10 अबहुमान - बहुमान भक्ति भावपूर्वक सामायिक न कर के बेगारी के समान सामायिक करे तो अबहुमान दोष | । (श्री जैन सिद्धात बोल सग्रह भाग तीसरा पृष्ठ 447 बोल न 764 ) वचन के दोष कुवयणसहसाकारे, सछंद सखेव कलहं च | विगहा वि हासोडसुद्धं, णिरवेक्खो मुणमुणा दोसा दस | 1. कुवबचचन - सामायिक मे कुबचन (कुत्सित वचन) बोले तो “कुवचन' दोष। 2. सहसाकार - सामायिक मे बिना विचारे बोले तो “सहसाकार” दोष | 3. स्वच्छन्द - सामायिक मे राग उत्पन्न करने वाले ससार समन्धी गीत रत्यालादि गाने गावे तो 'स्वच्छर्न्द' दोष | 4. संक्षेप - सामायिक मे पाठ और वाक्य कम कर के बोले तो “सक्षेप” दोष। 5. कलह - सामायिक मे क्लेशकारी वचन बोले तो “कलह” दोष | 6. विकथा- सामायिक मे स्त्रीकथा, भोजनकथा, देशकथा, राजकथा इन चार कथाओ मेँ से कोई कथा करे तो “विकथा” दोष | 7. हास्य - सामायिक मे हँसी-मजाक करे तो हास्य दोष | 8. अशुद्ध - सामायिक मेँ पाठो का उच्चारण भली प्रकार से नही करे अथवा सामायिक मे अव्रती को आओ पधारो कह कर सत्कार- सम्मान देवे या उसे आने- जाने का कहे तो “अशुद्धाँ दोष | 9. निरपेक्ष - सामायिक मे उपयोग बिना बोले तो “निरपेक्ष” दोष | 10. सुणसुण - सामायिक मे स्पष्ट उच्चारण न कर के गुण-गुण बोले (गुनगुनावे) तो “मुण-मुण' दोष | (श्री जैन सिद्धात बोल सग्रह भाग तीसरा पृष्ठ 448 बोल 765 ) काया के 12 दोष कुआसण चलासण चलदिद्ी , सावज्जकिरिया लंबणा-कुंचण पसारणं | | ५७0 (60 1 0)




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