वाल्मीकीय रामायण अयोध्या काण्ड | Valmiki Ramayana Ayodhya Kand
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
522
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ग्रन्थमाला के सम्पादक का निवेदन ।
पाँच से कुछ अधिक चपे हुए जब पे० राम छूमाया एम० पए० ने
मेरे साथ कुछ दिनों के लिये निवास किया था। उन दिनों परस्पर
घिचार के अनन्तर हमने निश्चित किया कि पं० राम छभाया दयानन्द्
फालेज़ के लिये वाल्मीकीय यरमायण कौ पश्चिमोत्तर शाखा का
संपादन फरेंगे । उस समय तक इस रामायण का एक भी हस्तलेस
हमारे नहीं था ।
मेरी सम्मति से दिसम्बर १७२१ में पे० राम छभाया कैयछ
गये | परलोकगत छाछा रामकूृष्ण धकील उन दिनों कैथल में थे । उन
के सप्रह से प० जी रामायण के दो प्राचीन ग्रन्थ छाये | यही रामायण
के संशोधन का भारम्म था। तत्पश्नात चार वर्षा में पश्चिमोत्तर
रामायण के मिन्न २ काण्डों के कोई २०० अ्न्ध एकत्र कर लिये गये।
इन में से पर्याप्त म्रन्थ आचीन सस्झत लिखित पुस्तकों के एकन्न फरने
घाले मद्दाशय भजन छाल के परिश्रम से हमारे पास आये हैं । समय २
पर मैंने इन सब का तुलनाप्मक दृष्टि स अध्ययन किया दे । उस से
में इस परिणाम पर पहुंचा ६, कि इस शासा फे यथोचित सम्पादन
के लिये क£ विद्वानों फ॑ भ्ुरि परिभ्रम की भावद्यकता दे | प॑० राम-
छभाया ने अपना काम उस समय तक प्राप्त खामरप्री द्वारा बढ़ी
सावधानी से किया था। थे अयोध्याकाण्ड के अतिरिक्त घाल,
भारण्य और किप्किन्धा काण्ड के कुछ अंश भी सम्पादन कर गये थे |
घन फे अत्यन्तामाव में भी मैंने अयोध्याकाण्ड यथा फथशित छपवा
दिया हे । अयोध्याक्ताण्ड के अन्त में १० अत्यन्तोपयोगी सूचियां
छापी गई दें । इनको मेने अपने निरीक्षण में रिसचे विभाग के शास्त्री
पे० प्रेमनिधि जी से तयार फरवाया है । पं० रामठमाया के साछसा
फालेज अम्गृतसर में नियुक्त दोने के पीछे पांचवें भाग का मुद्रण
पे प्रेमनिधि जी ने दी कराया दे । उन्हों ने दी पे० रामलभाया फी
प्रेल कापी शोधी है ।
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