हैमनाममालाशिलोञ्छ | Haimanamamalasiloncha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
168
श्रेणी :
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महोपाध्याय विनयसागर - Mahopadhyay Vinaysagar
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श्री जिनदेवसूरि - Shri Jindevsuri
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)३९
टीका ग्रन्थ--
१. शोेपसंग्रहनाममाला दीपिका
कलिकाल्सव॑ज्ञ. श्रीहेमचन्द्रसूरिमणीत शेपसग्रह नाममालां' पर श्रीवल्छम ने 'श्रेवल्लमी
नामक दीपिका की रचना वि. से, १६०७ मैाठपद कृष्ण ८ को, महाराजा रायंसिंहजी के
राज्यकाल में बीकानेर में की. है । संवतोल्लेखवाली रचनाओं में श्रीवंडलभ की यंह सवप्रंथम
रचना है । '
प्रत्येक शब्द की व्युत्पत्ति, लिज्ञनिवेंचन और इंब्दों के प्रयोग . सिद्धहेमशब्दानुशासन
'उणादिसूत, घातुपारायण, विश्वप़काश, शाश्वत, वेजयन्ती, मोला, इन्दु, बनमाला, अमर, वाच॑स्पति
. भविष्योत्तरपुराण, विष्णुपुराण, मार्कण्डेयपुराण, मत्स्यपुराण, सन्जीतरत्नावडी आदि ४६ ग्रन्थों के
उद्धरण देते हये दीपिकाकार ने सफलता के साथ स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है । दीपिका
' में २० शब्दों के राजस्थानी रूप भी प्राप्त हैं | ग्रन्थपरिमाण १९०० इलोक है | दीपिका
प्रकाशन योग्य है । ह
: इत्तकी प्रतियाँ विनयसागर सँग्रह कोय क्रमाहु ७७७ ओर महिमाभक्तिशञानभण्डार
त्रीकानेर, ग्रन्थाह् १६३०५ में प्राप्त है। जिनग्त्मंक्रीषप के अनुसार इसकी एक प्रति विमंल्गच्छ
उपाश्रय; अहमदाबाद में डान्रडा ने. ४६ ग्रन्थाक् ३५. पर प्राप्त है |
२, हेमनाममालाशिलोठ्छदी पिका
प्रस्तुत दीपिका का. परिचय आगे दरृष्टव्य है |
३. हैमलिड्ञानुशासनहुगंपदप्रबोध टीका 3०
श्रीदिमचन्द्रचार्यप्रणीत लिज्ञनुशासन - के स्वोपजञ्ञ विवरण पर दुर्गपदप्रबोधौ नामक
टीका की रचना श्रीवल्लमने आचाये. जिनचन्द्रसूरि एवं उनके - पह्चथए श्रीजिनसिंहसूरि के
धमराज्य में. विचरण करते हुये.बि. से. १६६१ कात्तिक शुक्ला सप्तमी? को जोधपुर में. द्धपति
. सूरसिंह .के विजयराज्य में ९० से अधिक ग्रन्थों के उद्धरण - देते हुये ३००० ग्रन्थ: परिमांण॑
की ।
घृत्ति की रचना मूल लिड्रानुशासन पर नहीं की गई है ! इसमें विद्यते या शुभा चृत्ति-
स्तस्य-दुर्गाशत्रोधद:? [प्र, प. १०] से स्पष्ट हे कि आचारये हेमचन्द्र का ही जो लिड्नुं-
शासन .पर स्वोपज्ञ विवरण है, .उसमें जिन जिन स्थानों में दोर्गम्य या .काठिन्य है उन -ही
रुथ॒लों पर इसमें .विवेचन किया :गेया है ।.इसिलिये .इस व्याख्या -का , नाम. श्रीवल्लभते दुर्ग
प्रदप्रनोध” रखा है ।
१ वर्ष आतानन्दमुखेखियेशपुत्राननाब्जप्रसिति [1६५४] वरिष्ठे | +. 7 हद, 5.
एम्यहें मांसि 'नभ्स्यक्ृष्णे. श्रेष्ठे- पुरे विक्मनामघेंये ॥२१।. -शेष॑संग्रहदीपिकोग्रशस्ति' «
३ श्रीमग्रोधपुरे द्रन्नें सूरसिहमहीपनो । आह के 2 जब 1 प
लानत कि हल - 5-४. हा आओ,
भूमिषद्र॒मतन्नीशसंख्ये १६६१ वें सुखाधिके न ये कक ये 5 पे दा
मासि कार्ज्िकिके कासते सुदिने सप्तमीदिति ॥५-ध . । ऑंस्तिई पल 1 +
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