हैमनाममालाशिलोञ्छ | Haimanamamalasiloncha

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महोपाध्याय विनयसागर - Mahopadhyay Vinaysagar

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श्री जिनदेवसूरि - Shri Jindevsuri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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३९ टीका ग्रन्थ-- १. शोेपसंग्रहनाममाला दीपिका कलिकाल्सव॑ज्ञ. श्रीहेमचन्द्रसूरिमणीत शेपसग्रह नाममालां' पर श्रीवल्छम ने 'श्रेवल्लमी नामक दीपिका की रचना वि. से, १६०७ मैाठपद कृष्ण ८ को, महाराजा रायंसिंहजी के राज्यकाल में बीकानेर में की. है । संवतोल्लेखवाली रचनाओं में श्रीवंडलभ की यंह सवप्रंथम रचना है । ' प्रत्येक शब्द की व्युत्पत्ति, लिज्ञनिवेंचन और इंब्दों के प्रयोग . सिद्धहेमशब्दानुशासन 'उणादिसूत, घातुपारायण, विश्वप़काश, शाश्वत, वेजयन्ती, मोला, इन्दु, बनमाला, अमर, वाच॑स्पति . भविष्योत्तरपुराण, विष्णुपुराण, मार्कण्डेयपुराण, मत्स्यपुराण, सन्जीतरत्नावडी आदि ४६ ग्रन्थों के उद्धरण देते हये दीपिकाकार ने सफलता के साथ स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है । दीपिका ' में २० शब्दों के राजस्थानी रूप भी प्राप्त हैं | ग्रन्थपरिमाण १९०० इलोक है | दीपिका प्रकाशन योग्य है । ह : इत्तकी प्रतियाँ विनयसागर सँग्रह कोय क्रमाहु ७७७ ओर महिमाभक्तिशञानभण्डार त्रीकानेर, ग्रन्थाह् १६३०५ में प्राप्त है। जिनग्त्मंक्रीषप के अनुसार इसकी एक प्रति विमंल्गच्छ उपाश्रय; अहमदाबाद में डान्रडा ने. ४६ ग्रन्थाक् ३५. पर प्राप्त है | २, हेमनाममालाशिलोठ्छदी पिका प्रस्तुत दीपिका का. परिचय आगे दरृष्टव्य है | ३. हैमलिड्ञानुशासनहुगंपदप्रबोध टीका 3० श्रीदिमचन्द्रचार्यप्रणीत लिज्ञनुशासन - के स्वोपजञ्ञ विवरण पर दुर्गपदप्रबोधौ नामक टीका की रचना श्रीवल्लमने आचाये. जिनचन्द्रसूरि एवं उनके - पह्चथए श्रीजिनसिंहसूरि के धमराज्य में. विचरण करते हुये.बि. से. १६६१ कात्तिक शुक्ला सप्तमी? को जोधपुर में. द्धपति . सूरसिंह .के विजयराज्य में ९० से अधिक ग्रन्थों के उद्धरण - देते हुये ३००० ग्रन्थ: परिमांण॑ की । घृत्ति की रचना मूल लिड्रानुशासन पर नहीं की गई है ! इसमें विद्यते या शुभा चृत्ति- स्तस्य-दुर्गाशत्रोधद:? [प्र, प. १०] से स्पष्ट हे कि आचारये हेमचन्द्र का ही जो लिड्नुं- शासन .पर स्वोपज्ञ विवरण है, .उसमें जिन जिन स्थानों में दोर्गम्य या .काठिन्य है उन -ही रुथ॒लों पर इसमें .विवेचन किया :गेया है ।.इसिलिये .इस व्याख्या -का , नाम. श्रीवल्लभते दुर्ग प्रदप्रनोध” रखा है । १ वर्ष आतानन्दमुखेखियेशपुत्राननाब्जप्रसिति [1६५४] वरिष्ठे | +. 7 हद, 5. एम्यहें मांसि 'नभ्स्यक्ृष्णे. श्रेष्ठे- पुरे विक्मनामघेंये ॥२१।. -शेष॑संग्रहदीपिकोग्रशस्ति' « ३ श्रीमग्रोधपुरे द्रन्नें सूरसिहमहीपनो । आह के 2 जब 1 प लानत कि हल - 5-४. हा आओ, भूमिषद्र॒मतन्नीशसंख्ये १६६१ वें सुखाधिके न ये कक ये 5 पे दा मासि कार्ज्िकिके कासते सुदिने सप्तमीदिति ॥५-ध . । ऑंस्तिई पल 1 +




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