शिक्षा सूत्राणी | Siksha Sutrani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
909 KB
कुल पष्ठ :
40
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भुमि का
वेद के छुः अड्भों में शिक्षा प्रथम अज्भ है। बालकों की शिक्षा ८
आरम्भ इसी झात्र से होता है। आजकल बर्णों के यथातथ उच्चारण की ओ
विशेष ध्यान नहीं दिया जाता | इस कारण वर्णों के उच्चारण में बहुविध दोष देख
में आते हैं। वर्णों के ठीक ठीक उच्चारण की ओर बचपन में ही ध्यान न दिया जा
तो यह दोप भहाविद्वान् हो जाने पर भी आजन्म बना रहता है | इसलिए बर्णों,
ठीक ठीक उच्चारण की ओर प्रत्येक माता पिता आचार्य को पूरा पूरा ध्यान देः
चाहिए | वर्णों के यथातथ उच्चारण न होने से वक्ता जिस अभिप्राय से शब्दों व
उच्चारण करता है, श्रोता उस अर्थ को ग्रहण करने में असमर्थ रहता है। अत ए
प्राचीन आचार्णो ने कहा है--
शब्दो हीनः स्व॒॒रतो वर्णंतो वा मिथ्या प्रयुक्तो न तसथमाह ।
स वाग्वजो यजमानं हिनस्ति यथेन्द्रशत्रुः स्वरतो5पराधात् ॥
इसी प्रकार अन्यत्र भी कहा है--
स्वजनः श्वजनों मा भूत् सकल॑ शकलं सकृत् शकृत् ।
अर्थात् स्वजन ( “:अपना व्यक्ति ) को यदि कोई “इवजन! इस प्रक
उच्चारण करे तो उसका अर्थ होगा 'कुत्ते का सम्बन्धी', सकल ( >-सम्पूर्ण ) ब
उच्चारण 'शकल” किया जाए तो अथ हो जाएगा 'टुकड़ा' । इसी प्रकार य|
सक्षत् ( एक बार ) के स्थान पर 'शक्कृत्? उच्चारण हो जाए तो उसका अर्थ होः
'मैला! ( विष्ठा--पाखाना ) ।
इसो प्रकार यदि अध्य ( ८ घोड़ा ) के स्थान पर “अस्वा उन्चार!
किया जाए तो अथे होगा “अपना नहीं? ( न स्व:--अस्वः ) । इसी प्रकार शारू
को साज्ली' बोला जाए तो अर्थ हो जाएगा बह चली ।
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