हिंदी विश्वकोश भाग - 13 | Hindi Vishvakosh Bhag - 13
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
121.81 MB
कुल पष्ठ :
769
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रधुर।म भाऊ-पट़ेरद्न ५६ बरया किया । परश रामने अपने पद पर प्रतिष्ठित रह कर प्रतिन्ना को कि सिन्धियाकों विपदु पढ़ने पर वे यथेषट अधि क सहायता करे गे। प्रथ -सग्रहके लिये उन्होंने निजामअलोके मन्सी मशिर-उल-मुल्कको कारागार से सुक्त कर दिया । वचिमनाजौके पेशवापद पानेक दूसरे हो दिन परशु - रामने नाना फड़नवोशसे पूना आ कर नुतननशा सन भार ग्रहण करनेका प्रस्ताव किया । लेकिन नाना नढों भआये--कोदणको ओर भाग गये। बलज्ञमटइने परश रामको सिन्धियासन्य ले कर नानाका पोछा _ करनेका इकुम दिया । परश रामने वसा तो नहों किया पर उनको सभी जागोर इथिया कर सिन्धिया राजको अपण कर दो आर पूनाका राजप्रासाद अपने लिये रख छोड़ा । यो परश राम श्रौर नाना फड़नवोशर्के विवादका एकतम कारण था। नाना. फड़नवोशने बाव राव फड़के तुकाली डोलकर और रायजो पाटेल द्वारा सिन्धियाराजके साध शुन्लभावसे यड षड़यन्त्र ९चा कि यदि व लोग बाजौरावकों सि हासन पर बिठा सके और बज्ञभटइकों के द करे तो वे नाना) उन्हें परण - रामभाऊज परश्वड नको सभी जागोर अच्मदनगर ढग शोर दश लाख रुपये श्रायकों सम्प्रत्ति प्रदान करेगे । इधर नानाने कोल ड्ापुर-राजकों मुलाव में डाल कर परशुरामभाज पर आक्रसण करनेके लिये उन्हें उत्तेजित किया.। १७८६ ईन्में वीके बाद कोल्हापुरके सरदार- मे परशुराम के अधिक्ञत प्रदेश भर बल्ञभगढ़ दुग को लूट लिया .। पोछे तासगाँवमें घेरा डालने भर उसे अच्छी तर ल.टनेके बाद उन्होंने परशुराम का घर जला दिया । नाना फड़नवौशने राघोजो भोंसले निजाम अली भौर भर गरेजों की प्रतिशत सद्ायतासे पुनरुद्दीप्त हो २७ भ्रक्त वरको बन्नभटइको कद कर लिया श्रीर परशरामभाऊ- को.भे केद करनेके लिये. मथिर-उल-सुब्क तथा ना पान्य चक्रदेवके अधोन सेना मेजो । प्ररशुरास चिमनाजों अप्पाको साध. ले कर शिवनेसो दुग को ओर भाग पर.राजइमि पकड़ गये भर कैंद कर लिये गये । बाजों- राज. ानाफ़डनधोशकों सदायतास ससनद पर आरूढ़. हुए पर उनका यह स्ट्भाव न रहा। बाजोरावन सताराराजकों सह्ायतासें नानाके सछकारी बावबूराव- कृष्ण श्रीौर नाना फड़नवोशकों कै कर लिया। किन्तु सतार।राजके व्यवछ्ारसे असन्तुप्ट छो बाजोराव चुस्प हो गये । दोनों हो धुद्धका आयोजन करने लगे । सिन्धिया राजने सताराका पक्ष अवलम्बन किया।. मधघुराव रस्तिया सतारा झ्ाक्रमणसे विफलप्रयन्न इो. मालगांव लौट आये । इस समय परशुराम मधुराय रस्तियाकी भाई ्रानन्द्रावके निकट माण्ड ग्राममें कद थे । बाई. नगरमें लाकर वे इस शत्त पर छोड़ दिए गये कि वे (परशुराम) पेशवाके लिए सेन्य-स ग्रह करके युद्ध कद गे। पिशवाके आदेशस और रस्तियाको सह्ायतासे थोड़े छो दिमों रे अन्दर बदतसे मनुअ आ कर परशुराम रे सेन्य- दलमें मिल गये ।. परशुराम दश हजार सेना ले नदी पार कर सताराकी ओर अग्रसर इए।. कई दिनों तक सतार। दुग में घेरा डाले ग्हनेके बाद राजाने आत्म- सप्रप ण किया अभोष्ट मिद्ध हो चु का ऐ+ा देख परश- रामने चमाप्रारी हो अपने सेनाकों बिदा शिया कि वे उनका पूव बेलन न दे सके गे। सबोंने तो सान लिया पर बाजीराव कब माननेवाते थे।. उन्होंने दश लाख रुपये खिसारा ले कर परशुराम क। पिंग्ड छोड़ा । १७१८ ई०में मह्ार रॉक साध टोपू सुतानकां विवाद उपस्थित इतना | नाना फड़नवोशम परशरामकें पुत्र भ्रप्पा साइबकों सेनानायकक पद पर अभिषिक्त करने को इच्छा प्रकट को । लेकिन उन्होंने यह पद लेना न चाहा । इसे पर नाना फंड़नवोशने परशुरासंभाऊंकों उक्क पद देनेिका विचार किया । ऐसा छोनेसे जो बुरे मनोमालिन्य दोनोंमें था सा मिट गंदा और मित्रता स्थापित इई । परशरामने अपना मन्तव्य प्रकट करते इए कद यदि इन्ह धारवार जिला चौर क्णोटक राच्यका कुक भाग जागोर तौर पर मिले तथा बाजोरावने पदले जो उन्हे जुर्माना किया था यदि वे माफ कर दे तो वे (परशुरास) वत्त मान समयमें महारा्ट्रवाहिनों परिचा- लनका भार ग्रहण कर .सकते हैं । इस युद्धमें टोपू सुल तानको चार हुई।. इतिहार में यह ४थ महिसुर-युदध नामसे वरशित है | ं
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