हिंदी निबंधमाला भाग - १ | Hindi Nibandhamala bhag - 1

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Hindi Nibandhamala bhag - 1 by श्यामसुंदर दास - Shyam Sundar Das

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्यामसुंदर दास - Shyam Sundar Das

Add Infomation AboutShyam Sundar Das

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( ७. ) चास्तव में मुके यह देख बड़ी श्रसन्तता होती थी कि संसार के सब सलुष्यों ने अपनी अपनी विपद फेंक दी है । उर्नकी आकृति से संतोष लक्षित हो रहा था । अपने कार्य से छुट्टी पा सभी इधर उधर टहल रहे थे । पर अब मुझे यह देख आश्चय हो रहा था कि बहुतो ने जिसे आपत्ति समझकर अलग कर दिया था उसी के लिये बहुतेरे मनुष्य टूट रहें थे एवं मनही मन यह कहते थे कि ऐसे स्वर्गीय पदार्थ को जिसने फेक दिया हे वह अवश्य कोई मूर्ख होगा । अब भावना देवी फिर चंचल हुई और इधर उधर दौड़ धूप करने लगी । सबको फिर बहकाने लगी कि तू अमुक पदाथे ले अमुक वस्तु न ले । इस समय सारी भीड़ में जो कोलाहल मच. रहा था उसका वर्णन नहीं हो सकता । मनुष्य मात्र में एक प्रकार की खलबली फेल रही थी । क्या बालक क्या वृद्ध सभी अपने अपने मनो- वांछित पदार्थ हू ढ़ निकालने में दत्तचित्त हो रहे थे । मैंने एक बृद्ध को जिसे अपने एक उत्तराधिकारी की बढ़ी चादद थी देखा कि एक बालक को उठा रहा है। इस वालक को उसका पिता उससे दुःखी होकर फेंक गया था । मेने देखा कि इस दुष्ट पुत्र ने कुछ देर वाद उस ब्ृद्ध के नाकों में दम कर दिया। वह बेचारा अंत में फिर यहीं विचारने लगा कि मेरा पृर्वे क्रोध ही मुझे सिल जाय । संयोग से इस वालक के पिता से उसकी भेट हो गई । इस ब्रद्ध ने उससे सविनय कहा कि मद्दाशय आप अपना पुत्र ले लीजिए और मेरा




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now