कुलोचित धर्म शिक्षा | Kulochit Dharam Shikhsha

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Kulochit Dharam Shikhsha by श्री शंकराचार्य - Shri Shankaracharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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फुलाचित बरमेशिज्ञा का उ्चीपन्न । घम्बर विपय शएए /0७ “० ण्ट /# ी 9 दी #< ११ श्र # >0 हिज्ञातनियों को साय प्रान' सोज़न करने का फऋथन चानप्रस्थ फो मद्य, माल, फवक, भृस्तूण, शिप्र श्लेप्पातक चजनेका ऊन « «« भोजन के लिये कुल गोत्र प्रो कहने का निषेध आत्माही फे लिये पाक्त करने का निषेध. - घेदपाटी को हच्य कव्य देने फा कथन भीष्मपितामष्ट ज्ञी फो गया में ज्ञाकर पिएडटान फरने फा कथन... ५ पिठ्गणों की उत्पत्ति फा कथन <.« तीसवां अध्याय । कलियुग का हाल घणन ... फलियुग के राजाओं का फथन विद्या च धमे का फथन अनध्यायों का कथन ब्ब८ फिसप्रकार के शिष्य पढ़ाने योग्य हैँ तिन फा कथन बिना पूछे वेद न फहै तिसका कथन निपेध के अतिक्रम में दोप . ... डुएशिप्पय को विद्या न पढ़ावे... माता, पिता ओर आचाये फी शुश्रपा करने में तपका फल मिलता है ... .. « ... माता; पिता, आचाये के अनादर और निन्‍्दासे सब कमे निप्फल है तिसका कथन ... माता आदि की शुक्षपा की प्रधानता का कथन - डुगोमदहिमा ओर श्कपाद घश्त का विधान «« इकतीसर्चा अध्याय । करूप्णाजुन सवाद काकथन . ..- हु फोशरया प्रति सरतजी को शपथस्राने का कथन धशिष्ठटज़ी का भरतजी फो उपदेश देने का कथन शए ९०७ ९७ ९७० प्टू पु पर ८ । दा ० ३७७ इजद इजप८ ३७६ इ्णर श्प्छ द्रेपर १६ ब्ल्ो० झ्न्ष ष्ट व ८ एए बाण ८ ७ 0 ४४ १७० ११ १२




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