पालि - महाव्याकरण | Pali - Mahavyakaran

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जनन्क पन्द्रह है (पूर्व-सवर्ण-दीर्घ ), श्रा, श्रात्‌ शे, या, डा, डच्चा, या आल्‌ [ शे--ए। या, याच्‌, ड्याजनया । डा, आल, झा, ( आत्‌ )55आरा ] इन प्रत्ययों का आदेश होता है । नाम-विभक्तियोंमें व्यत्यय होने के उदाहरण--- ऋजव: सन्तु पन्‍्था: ( पन्‍थान: )। परमे व्योमन्‌ ( व्योमनि )। लोहिते चमन्‌ (चरंरि )। आदर चर्मंन्‌ (चमंणि )। धीती ( धीत्या ), मती (मत्या )। या सुरथा रथी-तमा दिविस्पृशा अश्विना (यो सुरथो दिविस्प्शों अश्विनों)। नताद त्राह्मणम (नतंत्राह्मणम्‌ )। यादेव (यमेव) विद्य तात्त्वा ( तंत्वा )। युष्मे | ( युष्मासु )। असम ( अस्मभ्यम्‌ ) इन्द्राबहस्पती । उरुया (उरुणा), शृणशुया (ध्रृष्णुना) नाभा (नाभो ) प्रथिव्या:। साधुया (साघु)। वसन्‍ता यजेत (बसन्ते यजेत )। उर्विया ( उरुणा ), दार्विया ( दारुणा ), सुक्षेत्रिया ( सुक्षेत्रिणा-इति )। सुगात्रिया (सुगात्रेण )। द॒तिं नशुष्क॑ सरसी शयानम (सप्तमी एक वचन के स्थान में ईकार का आदेश ) । प्र बाहवा ( वाहुना )। स्वप्नया ( स्वप्नेन )। नावया ( नावा )। ( महाभाष्य--सिद्धान्त-कोमुदी ) काल तथा लकार को स्वच्छन्दता बेदिक भाषा में काल तथा लकार के प्रयोग में बड़ा अनियम था। एक- एक क़्िया-पद के लिए कितने अधिक रूप व्यवहत होते थे, उसे देख कर माथा चकरा जाता है । जेसे:--- 'इया, डियाचू, (इया, डियाच--इया), ईकार भी श्रादेश होते हें। तृतोया एक वचन में श्रयाचू, श्रयार (--श्रया) भी आदेश होते हें। (महाभाष्य )




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