ऐसे जीयें | Eshe Jiyen
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18.19 MB
कुल पष्ठ :
336
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about आचार्य श्री नानेश - Acharya Shri Nanesh
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)? चातुर्मास स्वयं के लिए उपयोगी बनें इस विराट विश्व में यदि कोई श्रेप्ठनम मार्ग है नो वह है सम्यरकुदर्शन नान चारित्र रूप मोक्ष मार्ग । इस मार्ग पर चलकर ग्रात्मा ऐसे स्थान पर पहुं सकती हूं जहाँ वह अनन्त-ग्रनस्त सुख मे तल््लीन हो जाती है । घस माग॑ का ग्रतीव सरस-वर्णन तीर्थकर महापुरुषों ने श्रपनी श्रमृत्तोपम वाचा के माध्यम से किया था । भ्रनन्त उपकारी गणधारों ने उसे सूत्र रुप में गू था झ्रौर वह झ्राचार्यो को परम्परा से सुरक्षित रहा । आ्राज हमारा अ्रह्ोभाग्य है कि हमें वही श्रमूल्य वाणी श्रवण करने को मिल रही है पर हम सिर्फ उस वाणी के श्रवण तक ही सीमित न रहें बल्कि गहन चितन मनन की स्थिति से उस आ्रानन्ददायिनी सरिता मे श्रवगाहन करने को कोशिश करे । शास्त्रो में जो वाक्यावलियां होती है वे गहन श्रथें से परिपुरित होती है । शास्त्रीय शब्दों को याद कर लेना एक बात है श्रौर उसके अर्थ में भ्रवगाहन करते हुए श्रपनी भ्राचरण भूमि को सम्यक् बनाना आत्म गुणों में भपने आरापको रमण करना दूसरी बात है । आनन्द रस प्रवाहिनी वीतराग वाणी का महत्त्व यदि जानना दे तो भुति को झनुभुति का रूप प्रदान करें । शास्त्रीय वाक्यार्थ को जीवन में उतारे । श्रापने कभी गन्ना चूसा होगा गन्ना चूसते समय झाप रस-रस तो चूस लेते है गौर निस्सार को फेक देते है ठीक इसी प्रकार शास्त्र में हेय ज्ञय उपादेय तीनों ही विषयों का प्रतिपादन होता है झ्राप ज्ञय की जानकारी करें हेय को निस्सार समक कर छोड़ दें श्र उपादेय रूपी मधुर रस को जीवन में उतार ले तो भापका जीवन झ्रतीव मधुर बन सकता है । मै शास्त्रीय विषय के साथ-साथ कुछ बातें झ्राध्यात्मिक जीवन सम्बन्धी भी कहना चाह रहा हूँ । अ्रध्यात्म क्या है ? भीतर की प्रकृति का अवलोकन कर कि मेरे जीवन में हिसा सत्य अचौये ब्रह्मचयं और श्रपरिग्रह की वृत्ति हैं या इससे विपरीत वृत्तियाँ मेरे जीवन में उभर रही है। जिसके जीवन में राग-द् ष की वृत्तियाँ उभर रही है तो उसका जीवन पशु से भी बदतर है । पशु में कम समभ होने से वह इतना खरतनाक कभी नहीं हो सकता जितना कि मनुष्य बन जाता है । मनुष्य यहू विचार करे कि मै पणथु से निम्न
User Reviews
No Reviews | Add Yours...