छांन्दोग्योपनिषद | Chhandogyopanishad

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Chhandogyopanishad by मोतीलाल जालान - Motilal Jalan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्तावता . थन्दोग्योपनिषद्‌ सामबेदीय तलवार ब्राह्मण अन्दर्गत €। फेनोपनिपद्‌ भी तलनवारशासानी ही हे। इसलिये इन दोनोंका एफ दी शान्तिपाठ हे। यह उपनिषद्‌ बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। इसरी वणनशैली अत्यन्त क्रमवद्ध और युक्तियुक्त हे। इसमें तस्वशान्‌ अर तदुपयोगी कर्म तथा इउपसनाओंसा वडा विशद और विस्वृत वर्णन हू । यद्यपि आजकल ओपनिपद कर्म ओर उपासनाका प्राय सर्वथा लाप हो आानेके कारण उसके रबरूप ओर रहस्यशा यवायव ज्ञान इने पिने प्रकाण्ड पण्डित ओर बिचारफोंकी ही है, तथापि इसमे कोई संदेह नहीं कि उनके सूलमे जो भाव ओर उद्देश्य निहित दे उसीऊ आधारपर उनसे परव्ती 'स्माते ऊर्म एवं पीराणिफ और तान्त्रिर् उपासनाओंदा आविभाव हुआ €। अ्रद्वेतपेदान्तकी प्रक्रियाके अनुसार जीत अधियाकी तीन शक्तियोंसे आवृत हे, उन्हें मल, वित्तेप ओर आवरण कहते है। इनमें मल्न श्रथात्‌ अन्त/करणओे मलिन रुस्फारजनित दोपोंडी निवृत्ति निष्फाम कर्मसे द्वोती है, विक्षेप अथांत्‌ चित्तचाश्वल्यरा नाश उड्पासनासे होता हे ओर आवरण अथांत्‌ स्वस्पबिस्मति या अज्ञानका नांश ज्ञानसे होता हूं। इस प्रज्नर चित्तके इन प्रिविध दोपोऊे लिये ये अलग अलग तीन ओपधियाँ है। इन दीनोंके द्वारा तीन ही प्रफारफी गतियाँ होती ढेँ। सम्ममकर्मी लोग घूममार्गस स्वरगांदि लोगोंफो प्राप्त होकर पुण्य क्षीण शोनेपर पुत्र जन्म लेते है। निप्कासकर्मी और उपासक अचिरादि साग्से अपने उपास्यदेवके लाऊम जारर अपने अधिकारानुसार सालोक्य, सामीप्य, सारूप्य या सायुध्य मुक्ति प्राप्त करते है। इन दोनों गतियोंरा इस ४+मिपदके पॉँचये अध्यायम विशद्रूपसे वर्शन किया गया ६ं। इन दोनोसे अलग जो तस्वज्ञानी होते ह उनके प्राणोंका स्थमण ( लोपान्तरमे गमन ) नहीं होता; बने शरीर यहीं ऋपनेज्पने स्पोंगे लील हो जाते हैँ आर पत्ट यहाँ ही बेवल्यपद्‌ प्राप्त होता हे । अद्वेतसिद्धान्कके अनुसार मोक्षया साज्षात्‌ साधन ज्ञान ही हे; इस विपयमे ऋते ज्ञानान्न मुक्ति/ ज्ञानादेव केबल्यम! अथतु




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