लोकोक्ति और मुहावरा | Lokokti Aur Muhavara

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Lokokti Aur Muhavara by सूर्यप्रकाश - Suryaprakash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वामा होती हैं। उनका यह मत सर्वेथा स्वीकार्य नही है, . वर्शीकि इस दृष्टि से 'इनरबेंदो... विभाय किए जा सकते हैं--जश्ञातनामा तथा अज्ञातनामा। जोतनामा लोकोक्तियों कैे-ल” रचयिता का नाम प्रयोक्‍ता को पता होता है। अनेक साहित्यकारो द्वारा प्रयुक्त लोको- वितया उन्ही दे नाम से जानी जाती हैं। ला्ड रसल ने इसकी अर्थ में लोकोबित को एक व्यक्ति की विदग्घता तथा अनेक का ज्ञान कहा है। इन परिभाषाओ में कहीं लोकोकित के सक्षिप्त रूप की चर्चा है, तो कही उनमे मिहिंत मानव बनुभव, बुद्धियत चमत्कार अथवा सर्वमान्य रुत्य का प्रतिपादन किया गया है, किन्तु कोई भी परिभाषा ऐसी नही है, श्सिमे लोकोक्ति को पूर्णेहपेण परिभाषित किया गया हो, अतएवं इनमे अव्याप्ति दोप ज्ञा जाता है । विभिन्‍न शब्दकोशो मे लोकोवित वा सारगभित विवेचन प्राप्त होता है। शिप्ले अपने साहित्यिक पारिभाषिक्त कोश मे लिखते है कि लोकोक्ति लोक-माहित्य का सक्षिप्त किन्तु अ्थ॑पूर्ण एक सूत्रमय श्रकार है, जिसमे सामान्य अनुभव पर आधारित सक्षेपततः जीवन की एक विचारपूर्ण आलोचना होती है। सामान्यत जनप्रिय मस्तिष्क से उद्भूत इस लोकोबित मे लोक-प्रचलित मनोदृत्ति का महत्त्वपूर्ण प्रतिब्रिम्ब होता है। रोम व जमेन की नॉटकीय व साहित्यिक आलोचना मे इसका बहुधा प्रयोग हुआ है। अपनी विशेषताओ के कारण ही यह लोक के द्वारा ग्राह्म होती है। 2? एक विश्वकोश के अनुसार लोकोक्ति किसी सत्य अथवा विंसी उपयोगी विचार को एक सक्षिप्त वाक्य में कहतो है , इसके प्रयोग से भाषा मे सरसता एवं चित्रात्मकता आ जाती है। इतका प्रयोग चिरकाल से अमेक व्यवितयो ढारा होता रहा है और आज भी प्रसग के उपध्यित होने पर इनका प्रयोग होता है। जन-सामान्य द्वारा ग्रहण विए जाने पर ही कोई उक्त लोकोक्ति का रूप धारण करती है (१ विभिन्‍न कोशो मे लोकोक्ति की अद्यावधि अनेक परिभाषाएं उपलब्ध हैं। एक विश्वकोश्न मे विवेचित तत्त्वो के आधार पर लोकोक्ति मे चार गुण स्वीकार किए गए हैं । ये हैं--सक्षिप्तता, सारगभितता, सप्राणत अथवा चटपटापन एवं लोकप्रियता । मूल रूप में इनमे ट्रेंच तथा हैवेल ने प्रथम तीन गुणो को और बाद मे हेस्टिग्स ने एक अन्य तत्त्व लोकप्रियता” को इसके अनिवाये तत्त्व के रूप मे अगीकृत किया है 17* डॉ० कम्हैयालाल 'रहला मे सक्षिप्तता, सारगभितता ओर सप्राणता किसी उतल्दृष्ट लोकोक्ति के तो अपरिहार्य गृूण स्वीकार किये हैं किन्तु लोकोवित मात्र के अनिवार्य गृण नही माने हैं।2९ यहा विचारणोय है क्षि प्रत्यक्षत डॉ० सहल ने इब॒गुणो को लोकोक्ति का अपरिहार्थ तत्त्व न मानकर भी परोक्षत इनके महत्त्व को स्वीकार किया है। सक्षिप्तता--सक्षिप्तता लोकोक्ति की अन्यतम विश्लेपता है। विस्तृत भाव को भी लोकोवित सक्षिप्त शब्दों द्वारा अभिव्यक्त कर देती है। गायर मे सायर भर देने का गुण लोकोबितियों से विद्यमान हैं। व्यापक समस्याएं, अनुभव माम्भीय मौर जटिल प्रश्न छोटे से नुकीले ओर चटपटे वाक्‍्यों में सिमट कर सदा से प्रचलित होते रहे हैं। * लोकोक्ति अपने लाघब के कारण सबके मुंह पर रहती है । बडे वाक्‍्यो की स्मरण वरना




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