मीनमेख | Meen Mekh

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Meen Mekh by फारूक अफरीदी - Faruk Afaridi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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13 मीनमख अगर शराब नहीं बिकती तो क्या हुआ, अन्य जगहो पर तो खुले आम देशी और अग्रेजी शराब के ठेके नीलाम हो रहे हैं। दिन दूनी और रात चौगुनी चादी कूटी जा रही है। सरकार का भी क्‍या कसूर है ! गाधीजी के सारे विचार मानने लगे तो विकास के लिये धन कहा से आये।विकास और विचार दोना मे से किसे प्राथमिकता दे--ये तो सोचना ही पडेगा वरना देश चलेगा कैसे । अब रही बात गरीबी दूर करने को तो गरीबी तो गरीबी बल्कि गरीबो तक को मिदने के लिये कमर कस रखी है। महगाई इतनी बढा दी गई है कि गरीब का जीना मुहाल हो गया है। मजबूत रीढ़ का गरीब ही जिन्दा रहेगा। जो बच जायेग्रे उनके लिये कल्याणकारी योजनाएं बनी हुई हैं। कर्ज लो और आत्मनिर्भर बनो। अब कर्ज लेकर घी पी जाओगे, दूसरी दुल्हन ले आओगे या माता-पिता का श्राद्ध करोगे तो उसमे किसी का क्या दोष। कर्ज से गरीब अपनी गरीबी दूर कर ले या खुद को मिटा ले। यह सोचना गरीब का काम है--गाधीजी उन्हे बताने के लिये परलोक से तो आने से रहे। मुसद्दी ने अपना बयान जारी रखते हुए कहा--' गाधीजी कहते थे कि मितव्ययी बनो। मूर्ख जनता बचत तो करती नहीं और चिल्ल-पौं मचाती है। गाधीजी को अपना आदर्श बना ले तो सुख की नींद सो सकती है। माना कि जनता गाधीजी की तरह नगे बदन नहीं रह सकती लेकिन रेडीमेड गारमेट की सुविधा तो ले सकती है। इससे न 'कपडा खरीदने का झझट न दर्जी के आगे मिमियाने की जरूरत | गाव-गाव अब सिले- सिलाये बस्त्रो के ठेले लगते हैं । सब्जी के भाव कपडे बिकते हैं । गरीब का तो उद्धार ही कर दिया गया है लेकिन गरीब है कि भाग की टेर मे रहता है। अब अगर कोई गरीब यह सोच रहा है कि कोई दूसय गाधी आयेगा या अवतार लेगा तो करो इतजार।' गाधीजी के जीवन दर्शन की ऐसी व्याख्या सुनकर मैं मन ही मन मुसद्दीलाल का मुरीद बनने को सोचने लगा। इसी बीच कोई फटेहाल बदा मेरे पास आया और कान मे कहने लगा--'बाबा फिर लेगा अजतार।' जल ।




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