एक और अभिमन्यु | Ek Aur Abhimanyu

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Ek Aur Abhimanyu by रामगोपाल गोयल - Ramgopal Goyal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अमित : हा अरी सविता तुम ! आओ ! कब आई ? बैंठो ! सविता : दर रा (विस्मित हास्य के साथ) नहीं, आप गप्पें लगा लीजिए, तब तक भाताजो से भिल लेतो हूँ। है कक [युवतों का प्रस्थान १ सोतर जातो हुई सविता को अमित के बे मित्र कनियों से देखते हैं ओर कुटिल हास्प के साथ एफ दूसरे को आँख मारते हैं। अमित उनकी इस हरफत से झेंप-सा जाता है ।] हरवंश : (अमित से) बादशाहो की गल है ? जहजात : क्यों भाई अमित बात कहाँ तक बढ़ी ? हरबश : स्टोरी कक्‍्लाईमैक्स तक पहुँची या नही ? अमित : अरे तुम दोनों यो बहफने क्यो लगे र शहजातत 1 हम बहवते है ? 'रवंश शहजात ५ अच्छा अमित ! अपनी वह कविता सुनाओ ॥६ [अमित जिज्ञासा को मुद्रा में ।] हम बहाते है ? लो भाई शहजात ,टूसरो (बीत सुनी 1 कि हरवश : अरे वही पैर स्वयं ही बढ जायेंगे शहजात : राह जरा मिल जाने दो । एक और अभिमन्यु/२५




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