भारतीय संस्कृति के प्रतीक | Bharatiy Sanskriti Ke Prateek
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
134
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गुरु
हमारे देश मे अत्यत प्राचीन काल से ही गुर को सर्वोच्च स्थान
दिया गया है।” गुरु की परपरागत सकत्पना भारतीय सस्कृति की एक
'अनुपम तथा अलोकिक मणि है। थहं हमारी सर्वाधिक मूल्यवान सपत्ति
है, बयोकि यह संकल्पना' ही इस महान राष्ट्र की भव्य आध्यात्मिक
प्रम्पराओ के कुछ सर्वाधिक मू यवान रूपो को सुरक्षित बनाये रखने तथा
उन्हे अविच्छिल्त स्थायित्व प्रदान करने - के लिए उत्तरदायी ह। 'गु”
आब्द का अथे अधकार “और *ह' का अर्थ प्रकाश” अयवा तेज” । अज्ञाव
को खत्म करने वाला ही गुरु है। इसका प्रथम वण 'गु” 'भाषा/ का गौर
द्वितीय वग ९? 'ब्रह्म' का द्योतक है जो भाषा की भ्राति का विनाश
करने बाता है। इस गुरूगयरपरा की प्रथा ने ही ओपनिषद युग के
ऋषिया के जीवत अनुभवों को आने वाली शताब्दियों मे पीढ़ी-दर-पीढी
सघबादीपूर्वक सुरक्षित वनाय रखा तथा उह प्रखर्ती युगा तक पहुँचाया ।
उस्न यह पवित्न काय हमारे राप्ट्र मे अनेक उम्र प्रत्यावतना के बावजूद
संपादन किया है । गुर म ही समस्त देवताआ का हमन निवास माना है ।
सथा-+ है
ट 'पुरुक्रहमा गुरुविष्णु
पुरुदेंवा महेस्बर. 7
गुरुरेव परमत्रह्म
+ ठम्मे श्रीयुरवे दम 7
अजरिप--
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