सूक्ष्मीकरण एवं उज्ज्वल भविष्य का अवतरण | Sookshmikaran Avam Ujjwal Bhavishy Ka Avataran

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Sookshmikaran Avam Ujjwal Bhavishy Ka Avataran by ब्रह्मवर्चस - Brahmvarchas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अरस्विव्कका एक बन्द कमरे में बैठा उच्चस्तरीय चिन्तन करने वाला महापुरुष अपने बिचाएं की ऊर्जा से सारी दुनिया कोहिलासकता है,सूक्ष्म जगत को प्रचण्ड झंझावातों से आंदोलित कर सकता है तथा दुर्भावना ओं को सद्भावना भरे वातावरण में परिणत करने की क्षमता रखता है , यह तथ्य नितान्त सत्य है ।योगिराज श्री अरबिन्द ने एकान्त में तप-साधना कर भारत की स्वतंत्रता के लिए वह सूक्ष्म वातावरण विनिर्मित किया, जो प्रत्यक्ष रूप में लाखों व्यक्तियों की आजादो की लड़ाई के लिए लड़ने के आवेश के रूप में सामने आया । प्रत्यक्षतः क्रांतिकारी रहे अरबिंद घोष जब श्री अरबिंद के रूप में पाण्डिचेरी बस गए, तब किसी ने उनकी इस भूमिका की कल्पना भी नहीं की होगी, किन्तु यह सृक्ष्मेकरण की सामर्थ्य है, जो चमत्कारी परिणाम सामने ला दिखाती है । महर्पि रमण, मैडम ब्लाबट्स्की त्था लेडबीटर आदि के प्रयास भी इसी स्तर के थे । परमपृज्य गुरुदेव ने १९८४ की वसंत पंचमी से सूक्ष्मीकरण में प्रवेश किया । उनने अपनी लेखनी से सतत लिखना जारी रखा कि “बीसवीं सदी के अंतिम बीस वर्ष और इक्क्रीसवीं सदी के प्रारंभिक पाँच वर्ष भुग-संधि की बेला के हैं।इस अवधि में विनाश को रोकने और विकास को आगे बढ़ाने की गति को तेज करना होगा 1 यह आपत्ति काल है, अत: इसमें हर किसी को अपनी भूमिका निभानी होगी । हमारी जिम्मेदारी जो है, उसे हम गीध- गिलहरी की तरह सत्तत निवाहते रहेंगे 1” अपनी सूक्ष्मीकरण साधना को पूज्यवर ने चाड्मय के इस खण्ड में उज्ज्यल भविष्य का आधार बताते हुए इस योगाभ्यास तपश्चर्या के विभिन्न पहलुओं को स्पष्ट किया है । चैत्र नवरात्रि १९८४ से आरंभ हुई उनकी यह साधना बसंत पर्व १९८६ पर समाप्त हुई ।इस अवधि में वे नितान्त एकाकी रहे । उनके साथ परम बंदनीया माताजी व दो उनके निजी सहायक यदाकदा उपस्थित रहते थे, किन्तु वे इनके अतिरिक्त पूज्यवर न तो किसी से मिले और न कक्ष से बाहर आकर किसी को सशरीर दर्शन दिए 1इस अवधि में लेखनो की उनकी साधना निरन्तर चलती रही। इस अवधि में आहार भी उनका सूक्ष्मतम रहा 1इस दौरान किये गये तप को उनमे प्राचीन काल के गुफा सेवन, सर्पाधि , छाया-पुरुष की सिद्धि की साधता नाम दिया ! अदृश्य स्तर की सत्ताएँ इस अवधि में किस तरह तप-साधना में सहायता देती है व उच्चस्तरीय प्रयोजन के लिए, प्रतिभाओं के जागरण व उनके परिष्कार के लिए किये जा रहे प्रयासों को किस तरह सफल बनाती हैं , इसे इस खण्ड में विस्तार से पढ़कर समझा जा सकता है । परमपूज्य गुरुदेव ने पंच जीरभद्रों के जागरण की बात इस सूक्ष्मीकरण सावित्री साधना के प्रसंग में स्थान- स्थान पर की है | अपनी काया में विद्यमान पाँच कोषों अन्नमय, मनोमय, प्राणमय, विज्ञानमय, आजनन्दमय कोधों को पाँच वीरभद्रों के रूप में कैसे विकसित किया जा सकता है, यह साधना-विधि समझाते हुए स्वयं चर दैवी सच्ाओं द्वारा संपन्न हुए प्रयोगों को उनने बताया है ।युग-परिवर्तन के लिए इन दिनों ऐसी प्रतिभाओं की नितान्त आवश्यकता है जो लोकमंगल केलिए अपनी प्रतिमा और पुरुषार्थ लगा सकें ) अत: विद्वान, कलाकार, चनवान, राजनीतिज्ञ जैसी संवेदनशील प्रत्तिमाओं का आह्वान किया गया है । इस कार्य को अगले पाँच वर्षों




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