गरियाहाट के पुल पर वे दोनों | Gariyahat Ke Pul Par Ve Donon

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Gariyahat Ke Pul Par Ve Donon  by गौरकिशोर घोष - Gour Kishor Ghosh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गरियाहाट के पुल पर वे दोनों 23 भरे सम्बन्ध को कुतर-कुतरकर खाये जा रही है? हम धीरे-धौरे क्षत-विक्षत हो गये हैं । थक गये हैं। एक-दूसरे के प्रति हतोत्साह हो रहे हैं। कभी-कभी निर्देय भी। वीच-बीच में जब मैं हम लोगों के, विद्येषतः अपने और तुम्हारे भविष्य की ओर देखता है, तो' मुझे लगता है जैसे कि हम दोनों प्रचंड वेगवान उत्ताल तरंगें हैं जो एक- दूमरे की ओर चली आ रही हैं, जिवका परिणाम अनिवार्यतः एक- दूसरे को आघात पहुंचाना है। मैं डर से आँखें मूंद लेता हूँ। तुम भी वया हमारे भविष्य के सम्बन्ध में ठीक ऐसा ही चित्र देखती हो ? डर लगता है? आँखें बन्द कर लेती हो ? या कोई और चित्र तुम्हारी आँखों में अंकित द्वोता है ? मेरी आँखो में जिस कारण से दूसरा कोई विकत्प नही है, यह एक ही चित्र रहता है, और उसी के परिणाम- , स्वरूप तुम्हारे और हमारे बनाये संसार में जो छन्दोमंग हो रहा है, उसका शीघ्र ही प्रतिकार करना मैं जरूरी समझता हूँ। आघात पहुंचाना हमारा अपना धर्म नही है, काम्य भी नही है। हममे से प्रत्येक चाहता है---एक सामंजस्य में पहुंचना, चलने का ठीक ढंग तय कर लेना, बयोकि वह ज़रूरी है। प्रियतमासु, यह तो सही बात है कि हम एक-दूसरे के मंत्र नही हैं । हम एक-दूसरे पर निर्म॑र-मात्र हैं। हमारी ग्रलती एक यही है, कि हम एक-दूसरे की किसी प्रत्याशा को मोलहों आना पूरी नहीं पाते। इस संसार में कोई भी किसी की प्रत्याघ्रा को सोलहों पूरी नहीं कर पाता । इच्छाओ की कोई भौगोलिक परित्रि और साधन अत्यन्त सीमित हैं। अतएवं, साथन और झात्य अन्तर रह ही जाता है। यह अत्यन्त मूल्यवान सूत्र दृन मर मान लें तो जो हमारे मनमे बब होता है, दृकाश दान्ल्मॉरि सम्बन्ध उस हिख-भाव से मुक्त हो सकता है। हिल्ा-माद ही रणद- आघात का जनक है। घृणा एवं विद्वेप, ठया ईप्यॉ बट भाव को पनपाने वाले साथन हैं। इस भाद को दूत रख हमारे कृष्ट मिट सकते हैं। अठाएव बाज, हल हे ,... निश्चय करें।




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