रोजनामचा | Rozanamacha

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Rozanamacha by इन्दु जैन - Indu Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मिनी मोटरगाड़ी बसों के लिए इन्तजार करती वेसद्गर कतार, ऑफिस पहुंचते के समय से आगे भागी जाती घडी, जैव में पडे सिनेमा के हताद टिकट, शहर के गर्म, वदसूरत माहौल से कही दूर निकल जाने की आकांक्षा, टैक्सी और स्कूटर-चालको की दया के भागे फैला मानो अपना भिक्षा-प्रात्र और सवकी आखों में एक ही सपना -“दरवाजे से लगी एक प्यारी-सी छोटी मोटरकार 1 क्या इस जैट-युग में अन- गिनत आकरपंणी से खिचते मन के लिए यह सपना गलत है ? गलत क्या--मान- सिक बिलास तक नही है। अपनी सवारी, सुपर मार्बोट की तरह आज की जिंदगी की जरूरत है। इंसान ने पामी पर चलना चाहा और जहाज बनाया, लम्बे रास्ते तेजी से तय करने चाहे और जमीन की छाती पर पटरिया बिछा दी, परिन्‍्दों की तरह उड़ने के लिए एल्युमिनियम के पंख पसार दिए---प्रह्माण्ड के सितारों की तरफ हाथ फैला दिया ।** फिर भी असंख्य लघु-मानव एक नन्‍्ही 'लघु मोटर-कार' के सपने देखते जनमते हैं और --और क्या--बस, सपने देसते ही रहते हैं । हम भारत- वासी तो यो भी स्वप्नरप्टा और सन्तोषी जीव हैं। एक तरफ तो अमेरिका में हर दो व्यक्ति पर एक गाडी का औसत है और दूसरी तरफ हम लगभग ६०० व्यक्ति प्रति गाड़ी पर सब्र किए बैठे हैं। लेकिन एक सुबह अखबारों ने एफ सबर छापी जिसे पढ़कर हमारे सोएं हुए सपने पल फडफडाने लगे । कार की भारी कीमत को ध्यान में रखते हुए सरकार ने एक कम कीमत वाली जनता कार, बेवी कार, मिनी कार--जो नाम आपको पसन्द हो- -बनाने कर इरादा किया 1 १६४६ प्रे भारतीय कल-पुर्ज लगाकर देशी गाठी का निर्माण कर लेने मे सस्ती छोटी गाडी की सम्भावना भी बढ़ गई थी। लेकिन नम्ही बिटिया की परवरिश ठीक न हो पाईं। सुझावों की टकराहट, विदेशी मुद्रा का रोजनामचा / २१




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