रवीन्द्र बाल साहित्य | Ravindra Balsahitya

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Ravindra Balsahitya by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दुकौड़ीदत्त 'किरानी बुकौड़ी दत्त रुपये लेकर झाया था । उन. रुपयों के बिना आज दिन भर का काम कंसे चलेगा ? 'ओह 17 बुलाशो ! उस आदमी को जल्दी बुलाओ ! (किरानी दौड़कर बाहर जाता है और कुछ क्षण के बाद पुनः आता है) वह आ्रादमी तो' चला गया । बहुत देखा पर कहीं भी दिखाई नहीं दिया । (सिर पर हाथ रखता हुआ) ऐसा लगता है भयंकर चक्कर में 'फंस गये हैं । न जानि-झआज कसी मुसीबत है ? : (तानपुरा, हाथ में: लिए एंक श्रादमी का भीतर श्राना) फडए दुकौड़ीदर्त “क्‍्या'बात है 'तानपुरावाल। हुजूर 1: श्राप जैसा. रसिक कोई दूसरा नहीं होगा । संगीत के विकास के लिए आपने क्या : - नहीं किया । ब्रापको गीत सुनाऊंगा । (तानपुरा: की - भांकार-के साथ गाता है) - जय जय. दुकोड़ीदत्त, जग मैं निरुपम महत्व ५० जय जय दुकोड़ीदत .। स्याति.का नाटक £ 25




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