श्री श्रावक व्यवहारालंकार | Shri Shravak Vyavahara Lankar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
240
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १३ )
जाणों जाबे तो उपचार वैद्यकूं करणा अंगीकार-
ही न करणा कदास रोगीके स्वजन बहोत आ-
भह करे तव असाध्य दशा कहणेवाला दवा
देबे तो बेद्यकूं दोष नही रोग तीन तरेसे हो-
ताहे पूर्वेक्तत पापके उदयसें वो दवाइसें मिठ-
नेवाला नही उसका इलाज ध्यांन जप पुन्य
सुपात्रकी नक्ति प्रमुख घममदे ? छुसरें माबापके जो
रोग होताह़े सो संतानके होताहे अथवा कुष्ट आं-
ख छुखणा खाज सीतला बोदरी सुजाक फिर-
गादिक संसभी होताह इसवास्ते नलशली संस-
गज कहजाताह़े १ इसका उलाज संसर्गजकाहे
नजशली मिठ्णा मुसकिलढे ३ तीसरा कायक
तथा सानसक रोगढ्े मिथ्या आहार मिथ्या
विहारसे वात पित्त कझादिकरसे होणेवाले तेसे
काम शोक नयसे होणेवाले जिसमें साध्यका
इलाज सहज हे कष्ट साथ्यका इलाज छुखें हो-
ताहे असाध्य रोग ट्याज्यदे देश क्षेत्र काल
अवस्था लंर अग्निवलकू विचारे फेर अधर्मकूं
नही प्राप्त होशेवाला इलाज करे ज्योतप निम-
त्तादिक शासतसें आजीविका करणेवाले पुरपकूं
यथार्थ फलही कहणा चाहीये जो फजित शा-
ख्में लिखा होवे नास्तिकादिकोने अपयें ” ,
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