श्री श्रावक व्यवहारालंकार | Shri Shravak Vyavahara Lankar

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Shri Shravak Vyavahara Lankar by श्री रामजीलाल - Shri Ramajilal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ ) जाणों जाबे तो उपचार वैद्यकूं करणा अंगीकार- ही न करणा कदास रोगीके स्वजन बहोत आ- भह करे तव असाध्य दशा कहणेवाला दवा देबे तो बेद्यकूं दोष नही रोग तीन तरेसे हो- ताहे पूर्वेक्तत पापके उदयसें वो दवाइसें मिठ- नेवाला नही उसका इलाज ध्यांन जप पुन्य सुपात्रकी नक्ति प्रमुख घममदे ? छुसरें माबापके जो रोग होताह़े सो संतानके होताहे अथवा कुष्ट आं- ख छुखणा खाज सीतला बोदरी सुजाक फिर- गादिक संसभी होताह इसवास्ते नलशली संस- गज कहजाताह़े १ इसका उलाज संसर्गजकाहे नजशली मिठ्णा मुसकिलढे ३ तीसरा कायक तथा सानसक रोगढ्े मिथ्या आहार मिथ्या विहारसे वात पित्त कझादिकरसे होणेवाले तेसे काम शोक नयसे होणेवाले जिसमें साध्यका इलाज सहज हे कष्ट साथ्यका इलाज छुखें हो- ताहे असाध्य रोग ट्याज्यदे देश क्षेत्र काल अवस्था लंर अग्निवलकू विचारे फेर अधर्मकूं नही प्राप्त होशेवाला इलाज करे ज्योतप निम- त्तादिक शासतसें आजीविका करणेवाले पुरपकूं यथार्थ फलही कहणा चाहीये जो फजित शा- ख्में लिखा होवे नास्तिकादिकोने अपयें ” ,




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