बीच की दरार | Bich Ki Darar

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Bich Ki Darar by से॰ रा॰ यात्री - S. R. Yatri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घीच की दरार : ३५ बुरे दिन थे लेकित भा के मुकाबिले मेरे पाश्त उन दिनों कौई बड़ी कूबत थी--दिल में जम्दे थे, फुछ मा ऋरने की घुद थी। हालाकि कोई शह सामने सुली नजर नहीं भाती थी लेकिन किर भी हरेक पत्र मदद सता था कि कुछ तया होने वाला है--कोई नया सन्देश मिलने बाला है । उस नागपाल को कही देस यूँ तो शायद प्राज पहचान भी मे सम मैने नागपाल को बीते दिनों की याद दोहरति मप्रव बहुत अस्त मुख पाया । यह एक बहुत मुश्किल पड़ी थी जब वहू स्वये के अतीत भे साक्षारझार कर रहे थे। हर कोई जानता है कि अपने तोव में पहुँचफ़र सामारण और प्रसाधारण आदमी एक जैसा ही हो जाता है। मीडा- विष्ठ होने वी स्थिति में सागपाल ज्यादा देर तक नहीं रह पाए । सामने एक भ्रादभी संहक के मोड पर लालटेन लिए सा था। उसे देसकर नागपात ने भादी रोक दी । नागपाल ने नीचे उतरकर पूछा, *वया ही गया सनपत // 'टोल टैक्स” का चौफीदार गनपत बोला-+/'टृणूर, सडक पर एक वजनी पत्थर भरा गिरा है--उसे हलाया जा रहा है->भ्रापकीं करीड् झाधा धष्टा ठहरना पड़ेगा १ /शुक है कि आधे धटे में ही रास्ता सुल जायेगा । किर उत्देनि चिन्ता व्यक्त करते हुए पूछा, “कोई हादसा तो नहीं हुच्ा ? “नहों टूजूर उस वक्त कोई गाड़ी आस-पास नहीं बी-ीती तो उसकी खैर नहों थी 1” गनवत्त ने नायपाल को श्राश्वस्त जिया । भ्रव उस जंगल में आया धण्टा या मियना भी बन्क लो हमें दहस्‍तां ही था | दम गनीमत यही थी कि मोद पर एछ घाय वी दुवान थी ६ मागपराल के मुठ बढ्ा--आादय भरद् तो बूछ किया ही नदी डा सकया मिवाय इस्तडार करने बै--हूम लोग उस खामपर मे चबशर परश-प३ प्यासा घांद ही पियें लव सके 1 गाड़ी वहीं छोडकर सागवाद चाय बी दुदान की झोर दः चारों तरफ थादी में ध्र्थवार पलों हृष्ा था भोर राव इब्ने 4 पर यु मस्ठीद था डि मूत्र तायवाल के साय बाते बरते अवशर पिए रा था |




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