यह सच है | Yah Sach Hai

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Yah Sach Hai by अमृता प्रीतम - Amrita Pritam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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के पोर से वह पानी पोंछा तो काफी के ग्रमें घूंट ने भी, उसके झरीर में एक उंडी-सी कम्पन उतार दी । उसके झरीर पर अभी तक वही कपड़े थे जो उसने रात को सोते समय पहने थे--उसका हाय एक आदत के तौर पर अलमारी में टंगे हुए अपने ऊनी ड्रेंसिग गाउन की ओर वढा। पर ड्रेंसिय गाउन को पहनते समय जब उसका हाथ स्वाभाविक ही उसकी जेव में गया--ऊनी गाउन की कुछ गर्माइश लेने के लिए तो हाथ जैसे जेब भें अटक गया--- एक जेत्र थी, जिसमें उसिला का हाथ था। उस दिन पिकनिक से लोटते हुए जब बहुत ठंड उतर आई थी''*उस दिन उसिला को हल्का-सा बुखार हो गया था। उसके पास कोई गर्म कपड़ा नहीं चथा। उसकी एक सहेली ने अपना कोट उतारकर जबरदस्ती उसे पहनाया था जिसकी दाईं ओर की जेब में उसने अपने दायें हाथ को गर्म कर लिया था, पर उसकी बाई और चलते हुए, उसके बायें हाथ को इकबाल में पकड़कर अपने कोट की जेब्र मे डाल लिया या । ओर उप्तिला ने जब अपने घर के पास की सड़क के पास आकर उधर सुड़ना चाहां था**““अच्छा, इकवाल ! इस मोड से मुझे पास पड़ेगा, मैं**'” ओर उसकी बात को बीच में काटकर इकबाल ने कहा था, “अकेली जाओगी ? अच्छा***! पर उसका हाथ इकबाल की जेव में था जिसे 'अच्छा' कहकर भी उसने पकड़ रखा था। और वह उसी तरह खड़ी रह गई थी । 'जाओ क्ग्ढँ 'हाथ* ब्ब्रै 'यह मेरी जेब में रहेगा ओर बह जोर से हंस पड़ी थी, कहने लगी, 'अच्छा, फिर मैं हाथ के बिता चली जाती हूं, पर यह बतामो तुम इसका कया करोगे ?” 'जेब मे डाले रखूंगा । “कितने समय तक ?” हमेशा “४




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