वैज्ञानिक भौतिकवाद | Vegyanik Bhotikvaad

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Vegyanik Bhotikvaad by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हब सोलद सूत्र “इसके विशदध द्वद्धवाद वस्तु तथा उनके (मानस) प्रतितियों-- पिचारा--त्रों उनके वात्तविक् संबंधों, उनकी गति-आरम्म, और अन्तके साथ दृदयगम करता है। द्वद्ववाद जीवन श्र सत्युक्ी असरय क्याश्रा प्रतिक्रियाओं, प्रगतिशील तया प्रगति विरोधी परिवर्ततनाँ पर पयगर ध्यान रखता है? “फ्िसी चीत और उसके पिरोधी भागका परिभाजन द्वदयादका सार है।”१ प्रचलित त्कशास्त्र और दृद्धगादम भारी अतर यह है, कि तब शास्त्र उसी वस्तुको अपने गिचारका तिपय बना सकता है, जो फ्रि स्थिर, ठोस, एक ही पार सदाके लिये पक्रीपमा६ मिल गई है। क्रिव॒ु, जगत्‌ और उसकी बख्यपें ऐसी नहा ईँ--गति और परिवत्तेन उनकी नस नसमे मरा है। रोजमराके साधारण व्यपद्ारफेलिये प्रचलित तय शास्त्र यम दे सकता हैं, जैसे साधारण क्रामके लिये अफ्रगणित या रीजगणित, फिजु जय हम चल-अद्दों, चल-उपग्रहों, चल-सूय, चल-नक्ष॒नोंकी टुनियाम पहुँच कर दिसार लगाना चालःते हैं, तो स्थिर गणित--अक-गणिव, ग्रीजगशित--चहां फराम नहीं दे सकता, वहाँ चल-कलनकी जरूरत पदती है। इसी तरद्द सौर परिवारके भीतर स्यूटनके गु्ब्वास्पंणसे हमारा काम बहुत कुछ चल जाता है, ऊिन्तु सोर परिवारम भी प्रारीक गणित तथा सौर परिवारफे पाहरकी समस्याओओंके हल करनेमें गुरुता- ज्पश काम नह्ष दे मक्‍्ता, वहाँ जरूर होती है आइन्सटाइनफी सापेक्षताफे अनुमार विश्वकी वक्रताकी २ ३ छद्धचादके सोलह सूच सक्तेपमें “पिरोष्रियोंसी एरता (समागम)” के स्िद्धातकों इ इबाद कहते है। इसपर हम आगे सयिशेप कहनेयाले है । द दृवादवे स्वरूपफो 2 क88०चक्माइफ (६ 70 )9 321 २ देखो “विश्वकी रूपरेया” ( सापेज्ञतावाद )




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