शीलोपदेशमाला | Sheelopdeshmala
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
32 MB
कुल पष्ठ :
458
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)् ग्रस्तावना,
गधी ज्ञाण्ण्णां पद्मबंध ग्रंथ रच्यो के. गंथ मागधी जाषामां होवाने क्ीवे
बहु कठीए सालम पडवाथी श्री सोमतिल्रक सूरिये विक्रम संवत १३१९४
नी शालामां तेना ऊपर शीक्षतरंगिणी ए नामनी संस्कृत टीका रची ठे.
टीका करनार सूरिये पण मूल्ष ग्रंथमां आपेलां दृष्टांतो उपर रसीक स-
नोहर कथाजं॑ दाखल करी ग्रंथने बहु सुशोजित बनाव्यों बे. यंथ मा-
गधी अने संस्क्ृत ज्ाषानो होवाथी अमे विद्याशाल्ञाना शासत्री पासे
तेनुं गुजराती ज्ञाषांतर करावी ढपावीने प्रसिझः कर्यो ठे, तेनुं
कारण एज के, जपरनी बच्ने ज्ञाषाना उंग़ा परिचयवाला हाकमां
आपणा जेन बंधुले ए यंथने वांचवानो ला लए ते महान आचायोंये
आपणा जउपर करेला उपकारनो तेमने धन्यवाद आपी ते पुरुषोए क-
रेला अश्रमने सफल करे.
- आ यंथ ढपाती बखते सतिमंदथी अथवा दृष्टिदोषथी जे कांइ चूलो
ने छे, ते पाठल शुद्धिपत्रमां सुधारी ल्वीधी के. वल्ली ११० मा पृष्ठे श्री
_मंल्विनाथनी कथा उपर ४० सी गाथा चझूलथी रही गयेल्ली होवाथी ते
गाथाने पाढल शुद्धिपत्रमां दाखल करवामां आवबी के. तो पण जो कोड
जूल रही गए होय तो तेने मारे हुं कमा माउुं ढं अने विनंती करूं ढुं
के, तेवी ज्ूब्यों सुधारी ल्लेवी.
लण० जेनविद्याशाला:
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