गोरक्षसिद्धान्तसंग्रह | Goraksh Siddhant Sangrah

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Goraksh Siddhant Sangrah by द्रव्येश झा शास्त्री - Dravyesh Jhaa Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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की । को प्राप्त किए हुए योगी अल्याश्रमी अबधूत कहते हैँ। छब उनकी आश्रम में गणना नहीं रहती। आश्रम से अतीत हो जाते हूँ उन में सर्वकर्तब्यता का निपेध ही वैदिक सिद्धान्त है। इस अवस्था फे निरूपण करने का प्रकार निषेधात्मक है । जैसे सर्वातीत ब्रह्म के उपदेश का भ्रकार नेति नेदि निपेधरूप 'मै। इसलिए परमाभैरूप से अन्य धर्मों का निषेध अवधूत के लिए फिया जाता है नकि व्यावहारिक जनों फे लिए। वास्तविक मं तो साधनायस्था तक अ्वधूत योगियों फे लिए भी संन्यास ईआभम में कह्टे हुये यमनियमादि धर्मों का पालन करना ही 1क्दा गया है और यही विशेष सिद्धान्त योगियो के मत में है. (कि बिना सिद्धि किये साधन का ट्याग नहीं छरना। फेवल एजाब्दिफ अद्ंग्रक्नारी जान फर उतने द्वी से नुष्ट होकर शृतबुन्य अपने फो नहीं मानना । और जो लोग बव्यावद्दारिक हैँ. उनके #डिए भ्रूतिस्पृति प्रतिपादित समल सनातन धर्म का 'बाचरण /छण्ना हो फहा गया हैं । देवतावाद, मूर्तिपूजा, परशाश्रम, #हुयादि सब धर्मों फा उल्लेस़ करके प्रमाणित क्रिया गया है। ६ इसमें तो इतने जोरों से प्रतिपादन दिया गया है कि सना- ;तिन धर्म फे प्रत्येक सिद्धान्त प्रयत्त सिद्ध हैं योगी लोग इला-




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