गणित सार - संग्रह | Ganitasar - Sangrah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
454
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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ः में अपनी बृत्ति रूगा रहे बे । सन् १९४ में उनकी मह प्रबछ इष्छा हो उटी कि भपनी
न्यागोपा्दित सपत्ति का उपयोग गिशेष रूप से बम और समाज की उप्तति क कार्म में करें | सइनुसार
उन्होंने समस्त देश छा परिप्रमज कर बैन बिद्मानों से साशात् भौर व्मलित सम्मतियों इस बात की
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सन् १९४१ के प्रीष्म काऊ म॑ ग़क्तचारीजी ने तीर्पक्तेत्र गबपया ( नासिझा ) क॑ शौतस बांतामरण में
जिद्वानों कौ समाथ एफ की और ऊद्यापोह पूर्वक निर्णय के दिए; उछ बिपय प्रशुत दिया।
विश्त्तस्मेबन के फडस्वस्प हछ्चजारीडौ ने बैन सक्कृति तया साहित्य के समस्त अगों के रस, उद्धार
और प्रचार के हेतु से बैन संस्कृति उरछक सप! जौ स्पापना की और उसके झिए३ , )
तीस इजार के दान की बोषणा कर दी। उनकी परिप्रइनिज्ृति बढ़ती गई, और धन १९४४ में
उन्होंने कृरमग २ ) दो स्मस्न की कपनौ सपूर्भ उपत्ति सघ को ट्रस्ट रुप से अर्पंध कर दौ |
इस तरह आपने अपने सरस्व का त्याग कर दि १६-१-५७ ष्पे व्सस्पन्त सावधानी और र्माधान से
उम्ाषिमरणकी लारापना की | इसी सघ % उस्तर्रत 'बीबराज दैन प्रषमास्प” का सपताढून हो रहा
है। प्रस्तुत प्रथ इसी प्रथमाश्म का बारइगों पुष्प है।
मुद्रक
गुराक्षयद् दिरत्क दोशी भस्म चाल
डैन सकति सरछक सप आ्धिव पकाएँ पल
शेघ््यपुर
कास्मैरव मार्ग, बायफसो
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