भारत वर्ष का इतिहास | Bharat Varsh Ka Itihas

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Bharat Varsh Ka Itihas by पंडित भगवद्दत्त - Pandit Bhagavad Datta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथम अध्याय--भारतीय इतिहास के सनोत ११ शबर और व्यास ने दिया है। दुगे के अनुसार तो यास्क्र भी आख्यान सहित भारत को जानता था। और व्याप्त का भारत कौखब-पाए्डव युद्ध के तीन सो वर्ष के अन्दर ही महाभारत नाम से प्रख्यात हो चुका था । ऐसी परिस्थिति में महाभारत ऐसे अनुपम ऐतिहासिक प्रंथ का भारतीय इतिहास लिखने में पर्याप्त प्रमाण न करना एक भारा भूल हैं। माना कि महाभारत के कुछ आख्यान वा वर्णन समर में नहीं आते” पर इतने मात्र से ऐतिहासिक प्रंथों में महा- भारत की प्रतिष्ठा कम नहीं हो जाती । हमें स्मरण रखना चाहिए कि मेगस्थनीज़ के वृत्तान्त ओर द्यूनसांग के बिवरणों में भो ऐसी कई बातें हैं, जो हमारी समभ में नहीं श्रा्ती । जिस व्यक्ति ने महाभारत के युद्ध-प्रकरण ध्यान से पढ़े हैं, उसे निश्चय ह्दो ज्ञायगा कि यह इतिहास कितना सत्य है । कृष्ण द्वेपायन ने एक एक व्यक्ति की कुल- परम्परा को स्पष्ट करने के लिए उस के नाम के साथ बहुधा ऐसे विशेषण जोड़े हैँ कि डस का वास्तविक इतिहास तत्क्षण सामने आता है। काल्पनिक इतिहास में यह बात हो ही न सकती थी । आन्ध्र और गुप्त काल के शिलालेब्ों में महाभारत काल के अनेक व्यक्ति स्मरण किए गए हैं। तव तक भारतोय वाडमय सबेधा सुरक्षित था। यदि इतने बड़े सम्राटों के राज-पण्डित इस इतिद्दास में विश्वास रखते रहे हैं, तो इस के ऐतिद्वासिक तथ्यों का कल्पित होना दुष्कर द्वी नहीं, असम्भव भी है। महाभारत और यवन शब्द बैबर आदि जमेन लेखक और उनका अनुकरण करने वाले राय चोधरी * आदि ऐतिद्वासिक मद्दाभारत में भारत के पश्चिम में रहने बाले कुछ लोगों के लिए यवन शब्द का प्रयोग देखऋर तत्काल कद्द उठते हैं कि महाभारत के ये प्रकरण सिकन्दर के पश्चात्‌ लिखे गए द्वोंगे। इस को हम अ्रान्ति के अतिरिक्त ओर क्या कह सकते हैं। यवन लोगों का इतिहास यूनान में बसने से बहुत पहले से आरम्भ होता है। उन की भाषा द्वी बताती है कि वे कभी विशुद्ध आये थे।? तभो वे भारत के के ज----अ>+म-म>»म9>»ण न नमन भ9-++- न» १. दौपदी तथा ृष्टयुज्ञ को उस्पत्ति आदि। २. प्राचीन भारत का राजनीतिक इतिहास, सन्‌ १९३८, 2० ४। ३, मनुस्टति १०४३,४४॥ अनुशासन पव॑ ३८|२१--२३॥७०।१९, २०॥




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