अथर्ववेद संहिता | Shoinkiya Athrvedsamhita Khand-3-4
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
488
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पंडित रामचंद्र शर्मा - Pandit Ramchandra Sharma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ख1]
* विपय पृष्ठ
वित करके बॉघे ॥ तथा आंगिरसीमहाशान्तिरे पलाशमणि
चम्धनमें भी यह सूक्त पढ़ां जाता हैं | ३७
द्वितीय अनुवाक-
प्रथम सूक्त । अभिचारकम में इससे खेरमें उसे पीपलकी
मणिफा सम्पातन और अभिमन्नण करके बॉथे ॥ तथा
इड्रिडालंकृत पाशोंकों इससे संपातित ओर अभिमन्नित कर
शज्रुके मम में बीधें ॥॥ तथा इसी खक्तसे पूरेबत् पराशोक्ो
अभिमन्त्रित कर तिथब्यराश्।! इस सातवीं ऋचासे नदीके
प्रवाहमें फेंक देगे ॥ इसी प्रकार पहिलेकी समान अभि-
मन्ज्रित पाशोसे आठवीं ऋचासे मेरित करे ॥ तथा अमि-
घरित और अभिचर्यमाणझे लिये विहित महाशान्तिके
मणिवन्धनमें भी यह रक्त पढ़ा जाता है । खदिर और
अश्वत्यक्या निर्वेचन । ४२
द्वितीय सूक्त । इससे क्षेत्रियव्याधिकी सिकित्साके लिये
हिरनके सींगकी यणिकों वाँधे, और सॉंगसहित जलको
पिलादे, हिरनऊ चर्मक्े शंकुछिद्रभागको भज्जलित करके
जलमपें दाले और उस जलतसे रोगी पर अभिषेक करे, यब-
होम, और अभिमस्त्रित भातका भक्तण करे। तथा कौमारी:
1 शान्तिके हरिणविषाणापग्रके मणिवन्धनमें यह सृक्त पढ़ा जाता
हैं । जलके भीतर संपूर्ण औपधि होनेका प्रमाण | «५४१
वृतीयसृक्त | इसका उपनयनऊममें वालकके नाभिदेश
फो छूकर अज्ञमन््त्रण किया जाता हैं । मेघाननन और
आयुवेधनके कार्मोंमे इससे होम किया जाता हैं ) विवाहमें
इसकी चौथी ऋचासे शुल्कद्रव्यकों अलग कर यह द्रव्य
तेरा है और यह मेरा कह कर विभाग करे। सांपनस्यकर्म
>शक्ऋफतचएसनए पत> पतज सपा ला जा पा भा ज ञ जल ज जन ञ सचज ऋ प्रजा प जच्प कक
User Reviews
No Reviews | Add Yours...