काव्यप्रकाश | Kavyaprakash

लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
446
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about थानेशचन्द्र उप्रेती -Thaneshchandra Upraiti
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हक अध्ययन शत
बाचाय॑े मम्मट ने जब काव्य के लक्षण मं अचडद्धारों का विधान विश्त्प रूप
से दिया तो अबड्भारवादियों को यह वितरत्प असष्य सा प्रतीत हुआ । जयदेव
का तो यहाँ तक 71हना है कि जो विद्वात अलद्भार से हीन शब्द और कर्थ को
दाज़्य मानता है, वह जग्ति दा भी अनु'्ण (उष्णवाहीत) क्यों नहीं मावता
है ? जिस प्रकार अग्नि छा उध्णतारदित होना अमसम्भव है, उसी प्रकार कास्य
का बलडूर से रहित हाता भी असम्भव है--
अद्भीकरोति य काब्य शब्दा्यॉबनलडू ती ।
असौ न मयत कस्मात् अनुष्णमनसड्धु सो ॥१॥ . ([चघरद्ध/लोक)
इस सम्प्रदाय में अलद्भार हा का य की आत्मा है।
अलड्भार मत के प्रवतेत आावाय॑ भागह हैं इस मत के पोषव हैं भामह
के दीयकार उदगट। देण्डी रूद्रट एव प्री ढ्ारेल्दुसज भी दसा मत के
बनुयाय्री है । द॒ण्डी के संत में काव्य के पोप्रक अगे को भी अलड्भार बहने हैं ।
खाट व प्रतिहारेन्द्रराज ने भी अपने ग्रथो मे /ल्भार हो। ही प्रभानता दी है ॥
झूब्यर ४ी स्प ४ गम्मात है कि प्राचीन आलयारिको वे मत मे अलंकार
ही बाब्य मे प्रधान होते है।
अलवारो का वित्ञाप्त घौरेन्धीर हो। आया है। भरत बे ताटबशास्त्र
में इन चार ही अलवार। वा निर्देश मित्रता है--यमक उमा स्पक्ष थ
दीपव । साहित्य के गूतरभूत अन्तकार य ही है. जिनमे पहला टब्दानड्भार
भोर तोत अंयलिद्वार है। भरत के मत मे यमक शब्दालकार दस प्रकार
था है और उपभा के पाँच भेद होते हैं--प्रसशा नित्दा उल्पिता सहयी तथा
रिक्चितू सइशी । रूपक तथा दीपक का एक एवं भेद होता है इन्हीं चार
अलड्डारो से विकसित तथा बधित होकर अलतारो की सरया कुबलयान'द मे
सवा सौ वे ऊपर तक पहुँच गयी है ।
कालक्रम के अनुसार अलतारों नौ संध्या के समात उनके स्वरूप मं भी
पर्याप्त भात्तर पडता गया है |
भरत ने नाटयशास्त (अध्याय १७) में ३६ प्रताए के लः हे
दिया है । बहुत से इन छक्षणों को परवर्तो आचारयों ते अवकार मे मम्मिसित
बर लिया, और इस्त प्रमार अलक्ारो क विज्ञास मे इन लक्षणा व! भो कम
हत्व नहीं है। उदाहरणाय, हेतु, आशी तथा तेश के विषय मे परवर्ती
आयाया की भिन्न मिल सम्सितियाँ हैं। भागह हेतु तथा लेश की तो अलंकार
नही मानते परन्तु आाशी को मलकार मानत हैं। दण्डी ने तीनों को अतकार
आना है। परवर्तो आचार्यों वे विभिन्न मत हैं। अप्यय दीक्षित ने वुवन्नयाननन््द
क्षणा या विवरण
User Reviews
No Reviews | Add Yours...