कालिदास काव्या मंजरी | Kalidasa Kavya Manjari

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Kalidasa Kavya Manjari by विद्याधर भारद्वाज - Vidyadhar Bharadvaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आर । सेवा के लिये यक्त जिस रूप में मेघ को संदेश दे रद्दा दै उससे यद सिद्ध दोसकता है. और कुमार संभव में शंकर और पार्वती के ज्ञिस संम्रोग शुद्धार का बर्ण॑न दे उसमें भी कालि- दास की धार्मिक घूत्ति में एक तरह की कमी मलकती दे पर कालिदास का घर्में केवल शरूर और पायती की डपा- सना में ही सीमित नहीं था। उसको फेवल शैच श्रथवा शाक्त मानना एक विचित्र बिडस्वना ह । दाशंनिक कि किसी एके विशेषरूप की उपाकप्तता मेंही अपन आपको सीमित नहीं करता ओर न उत्तका घम उसके आधार पर ही रक्षित अथवा नप्ट दोता है। करम्रि का धर्म विलक्षण है ओऔर यद उसझे अन्तस्तल में दी रहता दै। घद व्यापक सद्दा- छुमूति और पक व्यापक वैचिब्य में द्वी अपने इष्टदेय को दुँढता है और उसऊी पूजा में द्वी बढ़ किसी अजशात शक्ति की प्रेरणा से सर्ववा तन्मय द्वो जाता दे । यदि कालिदास आधुनिक कालर्म प्रचलित घार्मिक चिचारों ऊे हो अनुयायी डोते अथवा वे देव पूजा में द्वी घर्म- रक्ता को सीमित समझ लेने तो यह कद्दा जा सकका था कि कालिदास ने घर्म की कोई विशेष पर्योह नहीं की पर उसका धर्म यह उज्ज्यल धर्म था जिसमें ज्ीचन का आदि ओर श्रन्त उसके प्राकृतिक रूप में परिस्फुटित दोता दै। बद्द ममुप्य के कृत्रिम समाज़ का अनादर नहों फरता और न समय आने पर शिय, विष्ण, ब्रह्मा, गंगा और कृष्ण आदि




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