नलचम्पू अथवा दमयंती कथा | Nalachampu Or Damayanti Katha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
475
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)है नल्चम्पूः
अर चुक्े हैं। ( ऐसी स्थिति मे ) वक्तव्य वम्तु के उपस्थापन में विवेकशून्य
चुद्धिवाले मेरे जेस़े लोगो की इस तरह की तुच्छ वाणी कहाँ स्थान पा सकेगी 7
(फिर भो निराश होने की कोई बात नहीं है क्योकि) विद्वान सबका समादर
करने हैं 1 १५ ॥
बाच का्िन्यमायान्ति भद्श्लेपविशेषतः।
नोद्वेगस्तभ्न कतेब्यो यस्मान्नेक्ों रखः कवेः॥ १६॥
भसफ़श्लेपमुक्तिविशेषेण सदृण्वन्नाह--वाच इति ॥ यतो देतो कबे काब्यकर्तुन
जेंको रसो नेका रुचिः प्रसत्तिकच्णा ब्युस्पत्तिलक्धशाष्यस्ति ॥ १९॥
बिशेषत सभज्भ श्लेप में वाणी कठिन हो जाती है ( फिर भी ) उसमे
'उ्ठिग्न नही होना चाहिये क्योकि कवि के लिये एंक ही रस नही है ।
[ श्री ज्िविक्रम भट्ट जैस कवि को शिविप्ट काव्य-निर्माण में ही रसानुमूति
होती है ॥ १६॥ ]
काव्यस्थाम्रफल्स्येव कोमलस्पेत्तरस्थ थ।
यम्धच्छायाविशेषेण रसो5प्यन्याइशो मबेत् ॥ १७ ॥
ननु प्रसत्तिमार्मेण कोमछमेव काप्य नियद्धवताम , किमितरेण ब्यु'्पत्तिमार्गेण
अ॥श्लेपकृतकाडिस्ये नोद्ेगद्देतुनेश्पत आाइ--कावयस्वेति ॥ कोसडस्य प्रसश्नस्येतररप
ध्युरपप्रस्थ काप्य श्य रचनाचारुख्वेन रसोइपि शड्भारादिरसो3प्यन्याइशोउन्यरूपो
ध्युष्पत्तिषयंवा सोश्कर्ष ह॒व स्थात्। कस्येव। आम्रफ़ल्स्येष। यथाम्रफलश्याकार-
वैसाइश्य वस्घस्य बृम्तस्य नीलपीतादिच्छायायाश्च विशेषेण यावव्सः सस्वादो$
च्यस्पाध्य्मबति | बध्यतेइनेनेति कृश्व। वस्यो युन्त फ़ारस्भक्रसकणिकारूपों वा ।
फाम्यप्ते वस्घो रचना ॥ १७ ॥
आम्रफ्ल की तरह प्रसादगुणसम्पन्न कोमल काव्य तथा उससे समिन्न
शिलष्ट काव्य के रस में रचता-चातुरी के वंशिप्ट्य से अम्तर आ ही जाता है।
[ प्रसाद गुण युक्त सरल काब्योंसे अभिव्यक्त होते वाले रस मे और
श्लिप्ट काब्यो से व्यक्त होने वाले रस में पदमघटनामूलक ( बम्धच्छाया के )
विचित्रता के कारण अम्तर पड जाता है । आम के फ्त को तोड़ कर पकने के
लियि भूसा मे रख कर कपरे में बाद कर देते हैं तो उसका रस अत्यन्त मधुर
हो जाता है। यदि उसी नरह के आम को खुली जगह मे रख दें तो उपका
स्वरूप तो दर्शक के सामने टुमेशा रहेगा और कालक्रम से हवा एवं घूप के
साधारण सम्पर्क से वह पक भो जायगा तेकिन उमा रस वैसा नहीं होगा
जैसा भूमा आदि में बन्द कर पकाये गये आम का । ]
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