रसतरंगिणी | Rasatarangini

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Rasatarangini by भानु मिश्र - Bhanu Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथम; १. भाषादीकासहिता । (२३ ) यथा परशुरामवाक्यम्‌- नायारभ्य करोमि कार्मुकलताविन्यस्तहस्ताम्बुजः किश्वित्पाट्लभासि लोचनयुगे तावब्निमेषोदयान । यावत्सायककोटिपाटितारिपुक्ष्मा पालमोलिस्खलन- मछीमाल्यपतत्परागपट्लैनामोदिनी मेदिनी॥ १० ॥ किश्वित्पाय्लत्वादपूर्णता ॥शोयेदानदयान्यतमक्ृतः परि- मितो मनोविकार उत्साहः ॥ वीरस्तु युद्धवीर-दानवीर-द- का निधा कल यथा- नां संघट्यन्युति द्विगुणयं श्ापं चमत्कारयन्‌ नेत्रस्थाभिम्मुतों भविष्यति जगद्विद्रावणो रावणः । उदाहरण “नाद्यारभ्य” इत्यादि छोकसे कहते । छोकार्य यह है कि परशुरामजी कहते कि आजके दिन अर्थात्‌ सहस्राजुुनापराधादिनको आरम्भ करिके अर्थात्‌ अवधि करिंके कार्मुकलता अर्थात्‌ चापमें दिया है अम्बुजसब्श हस्तको जिसने ऐपा जो में सो किल्ित्पाटहभासि अर्थात श्वेतरक्तकान्तियुक्त छोचनयुगमे तबतक निर्मेपोदय अथांत्‌ पक्ष्माकुंचनारम्भको नही करूगा। कबतक, इस अपेक्षासे कह- तेहे कि जबतक मेदिनी अथांत्‌ प्रथिवी बाणाग्रविदारित शन्ुभूव प्रथ्वीपतियोके ' शिरत्ते बिखरी हुईं जो मालतीमाढा उससे च्युत जो पुष्परेणु तमूह उससे आमोदिनी अर्थात्‌ गन्धवत्ती नहीं होवे । यहांभी गुरुजनापराधादिविभाषित ' विशिष्टपतिज्ञाइभावित कध यद्यपि परिपूर्णही है तथाइपि किख्ित्पद्‌ क्रोधहीमे तातपथेंका सूचक है। और प्रतिनायकादिको आक्षेप करके पूर्ण ओधमें भी तात्पयकी सूचित नहीं करता है । यही वात किंचित्‌ इस पदसे कहतेहे ॥ अब उत्साह रक्षण “शोयें” इत्यादि वाक्यसे कहते 1 वाक्यार्थ यह है कि -शूरता और दान और दया एतद्न्‍्यतमकृत जो परिप्रित मनोविकार सो उत्साह है ॥ यहां एकमात्रका उपादान करे तो दूसरे उत्साहमे अव्याप्ति होगी । एतद्ल्यतमसे कृत अर्थात्‌ अनुभावषित जो ओद्धत्याख्य मनोविकार वह उत्साह है सो जानना। कार्यवोचित्पहीसे कारण॑वै- चिज्य जानाजाताहै यह वात ““वीरस्तु' इत्यादि वाक्यसे कहतेह भर्थात्‌ वीर चुद्धबीर, दानवीर, दयावीर इनभेदोंसे तीन प्रकार है। अब युद्धवीरके उत्साहका उदाहरण लेनाम इत्यादि छोकसे कहतेंहें। छोकारथ यह है कि सेनाको इकट्ठा करता




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