श्रीअनुयोगद्वारसूत्रं | Shreeanuyogdwar Sutram
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
326
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)्ं # असुयोगद्वार सूत्र #
केन्तु जैन वत, मूल प्राकृत वा उत्ति संस्कृत में ही प्रायः मतिपादित हैं
जिन में प्रवेश करना प्रत्येक व्यक्ति को सुगम नहीं है तथा जो ग्रजशानी भाषा
में “उब्बादि” लिखे हुए हैं यद्यपि वे परम उपयोगी हैं किन्तु वे एक प्रान्त के
लिये ही उपयुक्ष हैं सबे भान्तों के लिये नहीं ।
इसलिये संवे हितेषी आज दिन हिन्दी भाषा को ही प्रायः सबे विद्वानों
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मे स्वीकार किया है इसलिये मेरा विचार भी यही हुआ कि जैन शास्त्रों का
हिन्दी अजुवाद करना चाहिये जिस से प्रस्येक व्याक्ति आत्मिक लाभ ले सक्षे,
किन्तु इस काम में अपनी असमथथत्रा को देख कर इस शुभ काये में आज तक
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विलमस्व होता रहा अपितु १६७१धें वषका चातुमांस श्रीआओीओ गणा-
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च्छेदक वा स्थेव्रिपद विभूषित्त श्री स्वामी गणपतिरायजी
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महाराज ने कंसूर नगर मे किया तथा में भी आपके चरणों में ही दिवास
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करता था तब घुझे बाबू परमानन्दजी ने व. पं० सानि न्द्र्जान
परितं किया कि आप श्री अनुयोगद्वारजी सूत्र का हिन्दी अनुवाद करो जिससे
चहुत से भाणियों के जन शासन के अमूल्य ज्ञान की पाप्ति हो क्योंकि इस
सूत्र में प्रायः सब विषयों का समावेश है और पत्येक विषय को वड़ी योग्यता के
स्मथ वर्शन-किया गया है ओर जन सिद्धान्त की बहुत ही सुंदर शली से
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व्याख्या की गई है प्रत्येक विषय की व्याख्या उपक्रम १ निल्षिप रे अनु-
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गम ३ नये ४ छाराों की गई है । इसी वास्ते इस का नम अनुयो-
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गद्धर है ।
यथा--स्वाममिध्रायक सूजेण सहायेस्प अज्ञुगीयते अनुकुलोबा योगोस्यद्स
अभिषेय पित्येब॑ संयोज्यशिष्यभ्यः प्रतिपादनमनुयोगः सत्रार्थकथनमित्यर्थ
अथवा एकस्पापि सूत्र स्यानन्तोथ इत्यर्थों महान् सूत्र लखु ततथाणु ना सूेण
६० की. कर बह. 2७ ८७0 ३ । हे
सहायरुयग्रोगो अजुयेगः तथा अचुयोगस्य विधिवक्षच्यों थया प्रथ्त सूत्रार्थ एव
शिष्पस्थ कथनीय द्वितीयबारे सोपिनियुक्तयप कथन मिश्रस्तृतीयवारायां तु प्रस-
झाजु पंसगानुगतः सर्वोप्पर्थोवाच्यस्तदृक्क सुचत्थेखलुपदमोबीओनिज्जुतिमीसतो
संशियों तइयो निरविसेसों एसविही अणुओगो ॥
: इत्यादि मकार से अजुयोग की-विधि वर्णन की गई है तथा अन्य कार से
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