श्रीमाध्ववेदान्त | Shrimadhvavedant
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
316
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[७1]
आत्मावा भरे द्रष्टव्य: श्रोतव्यों मंतव्यों निदिध्यासितव्य:'
इत्यादि श्रुतिस्मृतिभ्य. | /क्ता-
श्ग्क्त्तो -
कर्मणा त्वथम: प्रोक्त: प्रसाद: श्रवणादिभि: ।
मध्यमों ज्ञानसम्पत्त्या प्रसादस्तृत्तमी मत' ॥
प्रसादात्ववमाद् विष्णो' स्वर्ग लोक. प्रकीतित: ।
मध्यमाज्जनलोका दिरुत्तमस्त्वेव मुक्तिद'
श्रवर्ण मनन चेव ध्यान भक्तिस्तथेव | श्
साधन ज्ञानसम्पत्ती प्रधान नान्यदिष्यते ॥॥,
न चैतानि बिना कश्चिज्जञानमाप कुतर्चन
इति नारदीये
बिना नारायण की पा के मोक्ष संभव नही है। बिता भगवान के स्वरूप
ज्ञान के/उनकों कृपा भो संभव नहीं है। इसलिए ब्रह्मजिज्ञासा (विचार) करनी
चाहिये । *जहाँ,जिस पद का, वाक्प्र का, जो अर्थ अभिधा से, लब्ध हो, वहाँ, उसे
हो।मानना चाहिए, जहाँ वेसा समव॒ न हो, ठो अन्यार्थ की कल्पना करनी
चाहिये” ऐसा बृहत्सहिता का मत है |
“ उस ब्रह्म को इस प्रकार जाननेवालछा यही अमर हो जाता है.” इसको
जानने का कोई दूसरा उपाय नही है, ज्ञानी भक्त मुझे अत्यन्त श्रिय हैं, क्योंकि
उसे मे प्रिय हैं,” परमात्मा जिसे बरण करते हैं. उसे ही भाप्त होते है, “बात्मा
द्रव्य, भोतव्य, मतव्य और निदिध्यासितव्य है” इत्यादि श्रुति स्मृतियों से ब्रह्म
ज्ञान की महत्ता निश्चित होती है |
“कुर्माशक्ति को अधम कहा गया है, श्रवण मनन आदि, भग़वत् ..संबंधी-कर्मो
मे ही,भगवर्क़पा प्राप्त होतो है। भगवत् सवधो ज्ञान हो जाना दा मब्यम .
कोटि का प्रयास है, भगवत् कृपा प्राप्त होना ही उत्तम बात है। थिना कृपा से रे
स़गेंछोफ पा सकना अधम गति है । जनछोक मे प्रशस्ति पा लेना मध्यम गति
है। मुक्ति देने वाली भगवत्तपा ही उत्तम है। श्रवण, मनन, ध्यान और भक्ति
ज्ञान प्राप्ति के प्रधान साधन हैं । इनके अतिरिक्त कोई और साधन नहीं हैं ।
इन साथनों के बिना कभी विसी ने ज्ञान नही प्राप्त किया ।” ऐसा नारदपुराण
का स्पष्ट मत है। हा
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