शिवराज विजय | Shivraj Vijay Part- I
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
340
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)॥ क्री ॥
निर्माणहैतु
गद्य कदीना निकष वदन्ति!!
इलोक एकस्याउप्यशस्य चमत्कार-विशेषाधायकत्वे सर्वोडपि एछोक
प्रशस्यचे, न च पद्चे तथा सुछुभ सौष्ठवम्, गधे तु सर्वाज्भी ण-सोस्दर्य-
मुप्लभ्येत चेतू , तदैव तत् प्रशसा-माजन भवेद् भव्यानाम्। पद्चे
छुल्द पारवश्यात् स्वच्छन्द-पद-प्रयोगो तन भवतीत्यनिच्छता5पि
कविताअसद्भ-प्राप्त स्वाभाविक स्वल्पमपि वचनीय ववचिद् विस्तार्यते,
वंवचिद् बहुपि नियताक्षरे सक्षिप्य क्षोदिष्ठ विधीयते, ववचिरुच
हित्-स्वाभाविक-पद-अ्रयोग-समापनीयान्यपि पारस्परिकाछाप-
सयक्त-पराप्त-वाक्यानि जटिलीकियत्ते | गद्ये तु यदि किसपि तादुश-
भस्वाभाविक स्थात् , तत् कवेरेव निर्देवित महृदवद्यमू, इत्यादि-
कारण पद्यापेक्षया गद्यमेव महामान्य भवति, भवत्ति भर दुष्करमपि
गद्यकाव्यभेव । अत एच शुद्ध-पद्यात्मकेषु वहुषु महाकाव्येष्वपि खेण्ड-
काब्येब्वपि व् प्राप्येष्वपि गद्यपद्मात्मकेषु चम्पू-ताटकादिषु चानेक्रे-
प्पलभ्यमानेष्वपि, शुद्ध-गद्य-काव्याति तथा ताउप्साथन्ते । अस्माक
महामान्या धनन््या सुवन्धु-बाण-दण्डिनों महाकवयों थे वासवंदत्ता-
कादम्वरी-दशकुमारचरितानि सुवामधुराणि सदा सदनुभव्यानि
गधकाव्याति विरचय्य भारतवर्ष सबहु-प्रमोद-वर्ष व्यधिषतत, येषा
चोक्ति-पर्यालोचन-प्राप्त-पर्याप्त-व्यूट्प्तयोडस हुचाब्छाबा अद्याउुपि
वरेन्ते, वतिध्यत्ते च चिराय । पूर्वर्भट्टार-हरिचन्द्र-प्रभृतिभिरेत्त-
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