शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ | Shataknam Pancham Karmgranth
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
334
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री देवेन्द्र सूरी - Shree Devendra Suri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हृण३ शतकनामा पंचम कमग्रंथः
प्रकतिनों उदय विज्वेद काल परत निरंतर होय, पण तेनो लद॒य॑ तेनों वि
ज्षेद थया विना चूटे नहीं. ते न्रीजी ध्रुवोदयी प्रकति जाणवी. चोथी जे प्रकू
तिनो डद़य फेवारेंक होय वली केवारेंक न ढोय वली होय एम आंतरे लदय
दोय ते चोथी अधुवोदयी प्रकृति जाणवी. पांचमी जे प्रकतिती सत्ता स्वेजी
बने एटले मिच्यालीने पण सवेदा पामियें परंतु नव प्रत्ययादिक कारणीक न
दोय-ते पांचमी ध्रुव सत्ता प्रकृति जाणवी, तथा ढष्ठी जे प्रकतिनी सत्ता नवप्र
व्ययें तथा शुण प्रययेज होय पण अन्यथा न ढोय, ते ढष्ठी अधुव सत्ता
प्रकति जाणवी, सातमी जे प्रकृति आपणा क्षानादिक पातें फरी आत्माना
गुणने आवरे, ते सातमी घातिनी प्रकृति जाणवी. आठमी ने प्रकतिना उद़
थथी आत्मानो कशो पण गुण अवराय नहीं. ते आठमी अधातिनी प्रकृति
जाणवी, नवमी जे प्ररृतिनो विशु८ परिणामें उत्कृष्ट मितो रस बंधाय तथा
जेने सदयें जीव, अजुकूल पणे वेदे, ते नवमी पुण्यप्रकृति जाणवी. दशसी ने
प्रकृतिनों संक्तेश परिणामे उत्कष्ठ कटुक रस बंधाय, ते दशमी पाप प्ररुति
जाणवी, अगीआरमी जे कर्मेप्रझ्ति आपणी विरोधिनी प्रुतिनो बंध त्तथा
शदयने निवारीने, पोतानो बंध तथा लद॒य देखाडे, ते अगीआरमी परावत्मा
न प्रकृति जाणवी, बारमी जे क्मप्रकृतिनों बंध तथा उदय, अन्य प्रकृति साथें
विरोधिनी नहीं तेना कारण उते पण ढोय ते बारमी आअपरावत्तेमान अविरोधिनी
प्रकृति जाणवी. एम ए एक ध्रुवबंधिनी, बीजी घ्रुवोदयी, त्रीजी धुवसत्ता, चोथी
घातीनी, पांचमी पृष्य, उच्दी परावत्तमान, एथी इतर एठले लपरांठी एक अधुवर्ब
पिनी, वीजी अध्रुवोदयी त्रीजी अधुवसता चोभी अधातिनी, पांचमी पाप, ही
अपरावत्तेमान, एम ढ नेद साथें मेलवतां बार धार थर्या, हि
तथा चार विपाक एठले लद॒य कालनां ठाम, तेनां नाम कहे बे. एक क्ेत्रवि
पाकिनी, बीजी नवविपाकिनी, त्रीजी जीवविपाकिनी, चोथी पुज्नलविपाकिनी,
एम जे जे कमेप्रकृति, जे जे विषाकिनी होय, ते कहीझं. एटले शोल धार कहां.
तथा चार बंधविधि, एदल्ते बंधना प्रकार तेमां एक प्रकृतिबंध, बीजो स्थिति
'पू त्रीजो रसबंध, चोधो प्रदेशबंध, ए चार प्रकारना बंधने उत्हए तथा जधन्य
| नें कहीझं, एवं वीश ६र थयां.
“| जूयस्कारबंध, बीनो अव्पतरबंध, श्रीजो शवस्थितबंध, चोयो
शह्ण तथा प्रकृति बेधादिक जे लत्कष्ट जपन्यपणों तेना खामी
._
User Reviews
No Reviews | Add Yours...