तांत्रिक वाड्मय में शाक्तदृष्टि | Tantrik Vadmay Men Shaktadrishti

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Tantrik Vadmay Men Shaktadrishti by महामहोपाध्याय डॉ. श्री गोपीनाथ कविराज - Mahamahopadhyaya Dr. Shri Gopinath Kaviraj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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... प्रकाश के साथ जो एकात्मकरूप में प्रकाशन है, वही अनुग्रह है। इसीलिए शाक्त . हृष्टि से अधिकारी पुरुषों की संख्या तीन न मानकर पाँच मानी जाती है। प्रचलित... ....._ तीन अधिकारियों के अतिरिक्त ईब्वर और सदाशिव--दो अधिकारी और माने... .. जाते हैं के 1 1 ... शाक्त दृष्टि की और एक विशेषता ध्यान देने योग्य है। अद्वैत शाक्तमत ... तथा बच्दैत दैवमत प्रायः एक ही प्रकार के हैं, इसमें सन्देह नहीं, फिर भी शक्ति की _ .../.. महिमा उद्देत शैवमत में भी मानी जाती है। शिव तथा परमशिव एक होने पर... ..... भी ठीक एक नहीं हैं; क्योंकि शिव शक्तिहीन प्रकाशमात्र है, यह शिव होने परभी .. व्स्तुतः शव हैया जडवत्‌ है | शक्तिहीन शिव--शिवतत्त्व-- , जो अनाश्रित शिव के... .... नाम से शात्ें में प्रसिद्ध है, में चिदैक्त की ख्याति, अर्थात्‌ स्कुरण न रहने के कारण .. वह एक प्रकार से अविद्या से भरा है, इसीलिए इसे अख्यातिमय कहा जाता है।.... ...... यह दिव विश्वोत्तीर्ण है। परन्तु, शक्ति के योग से ओर उसकी समरसता के प्रभाव. ..... से वही शिव परमशिवपद को प्रात होता है। उस स्थिति में वह विश्वोत्तीण होने पर... .. भी विश्वात्मक है। एक निमीरून-समाधि से शेय है और दूसरा उन्मीलन-समाधिसे ... . प्राप्य है। एक छृश है और दूरुरा एर्ण | शिव प्रंकाशमान्ररूप होने पर भी परमशिव ..... आनन्दभय घनीभूृत प्रकाशरूप है | इस भेद का कारण शक्ति का सम्बन्ध है | वास्तव. .... में त्रिकवादी दार्शनिक कहते हैं कि आत्मा ठान्त्रिक म्त में विश्ष्टी्ण होने पर भी... ... तथा बुलाम्नराय के अनुसार दिश्वमय होने पर मी वंस्तुतः एक साथ दोनों ही है ! . तृतीय मत में दोनों का युगपत्‌ समावेश है; इसीलिए शाक्त दृष्टि के अनुसार वासविक सिद्धान्त यह है--हये हि तुरीया संविद्भह्ाारिका तत्तसंप्य्यादिमेदानुमन्ती .. संहरन्ती चर महापूर्ण च कृशा चोभयरूपा चानुभयात्मा अक्रममेव सफुरन्ती स्थिता। यह... . कहना अधिक है कि प्रकाशमात्ररूप शिव वस्तुतः शक्ति ही है। शक्तिहीन होने पर भी .. बह शक्त्यात्मक है। शून्यातिशून्य-रूप कहकर आगम में उसका वर्णन किया गया है।... शक्तिहीन इसलिए कहा जाता है कि उस स्थिति में शक्ति अव्यक्त रहती है | बस्ठुतः, अस्ति! और 'भासते! एक ही के वाचक हैं--जिसका अस्तित्र है, उसी का भान.. शैता है एवं जिसका भान होता है, उसी का अस्तित्व माना जाता है | इसीलिए, सत्ता...




User Reviews

  • rakesh jain

    at 2020-11-24 11:40:06
    Rated : 8 out of 10 stars.
    category of the book is Tantra
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