कीर्तन प्रणाली के पद | Kirtan Pranali Ke Pada

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Kirtan Pranali Ke Pada by ब्रजभूषण लाल - Brajbhushan Lal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ ) पद-संश्ष्या पद-प्रतीक प्ृष्ट-संख्या | पद-संख्या पद-अतीक पृष्ठ-संख्या “** बलिहारी रासविहारन की० (पद-सं,२४६) फर्तिक कृ० १६ मंगला दर्शन । ह भोग के दर्शन “* देखो देखो री नागर नट० [पद-सं,२३४)] श्य्८ चलिये जू नेक कोतुक देखन० “६२ शयन दर्शन । २८६ उरभी कु डल लट० ६३ | ३०४ स्याप्त सजनी सरद रजनी० 8६ संध्या भोग आये । * बल्यों मोरसुकुट० [पद-सं.२६४] २६० रास विलास गहे कर पल्लव० . छरे पोंढवे में | शरद के समान २६१ ततथेई रासमंडल में बने नाचत० ह३ संध्या समय ! ..- गोपवर्धूमंडल मधिनायक० (पद-सं.२४२) शुयन्त भोग आये | *** गिडू गिड्‌ थुग थुर० २६२ लाल संग रास रंग॒० २६३ रसिकन रस भरे हो नृत्यत रास० ६४ २६४ वन्यो मोर झुकुठ नटवर वपु० ६४ २६४ बंसीचट के निकट हरि रास रच्यी० 8४ २६६ मंडल मध्य रंगभरे स्पामा।स्पास ०. ६४ २६७ सुन धुनि मुरली हो वन बाजे०.. ६५ २६८ अहो रेन रीकी हो प्यारे० 8५४ शयन दर्शन, बीरी अरोगे तब तक राग मालब की अलापचारी होय । बेरु॒ धरे तब | (पद्‌ सं,२४३) ६३ २६६ अलाग लागन उर१ तिरप० &५ ३०० पूरी पूरनमासी ० 8४ ३०१ रास रच्यो हो श्रीहरि &६ आरती समय |; ३०२ श्रीवृषपभाननंदिनी हो नाचत लालन०६६ पोंढबे में | फॉक पखावज सूं_ ३०३ सरद उजियारी हो कैसी नीकी० ६६ *** दोठ मिल करत भावते० [पद-सं,९२५५] कार्तिक कू० २ शीगिरिधरज्ञालजी के उत्सव की बधाई भाद्र० शु० ६ के समान | कार्तिक कृ० £ (गिरिधरत्ञालजी को उत्सव ) (मंगलासू राजसोग तक भाद्र शु० ६ के समान) भोग के दर्शन । ३०४ स्थाम खिरक के हरे करावत्त ० ३०६ खिरक खिलावत गायन टाड़े० संध्या समय । ३०७ खेली बहु खेली गांग बुलाई धूमर० ६७ शय्रन भोग आये। 89 6६७ ३०८ कान जगावन चले कन्हाई० ६७. ३०६ आज अमाचवस दीपमालिका० 8७ ३१० आज कुह् की रात है माधो० हद ३११ आजु दीपत दिव्य दीपमालिका० 8८ शयन द्शैन । ३१२ मानत परव दिवारी को सुख० ह्ष मान, पोढवे में । ३१३ तोहि मिलन कों वहुत करत हैं 88 ३१४ वे देखो बरत ऋरोखन दीपक० . 8&& कार्त्तिक क्ू०७. ( भीबालकृष्णुल्राल जी के गादी बिराजे को उत्सव संगला दर्शन *** आज बधाई मंगलचार० [पद-सं,७४]




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