हिन्दू विवाह में कन्यादान का स्थान | Hindu Vivah Men Kanyadan Ka Sthan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
63
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कम्यादान और हिन्हू विचाहम उसका सहस्व २७
कहनेका विशेष कारण है । हमारी सभी स्मृतियोंने ऐसा कहा है कि विवाह-
के आठ प्रकार होते है : ब्राह्म, देव, आर, प्राजापत्य, झासुर, गान्धर्व, राक्षस
और पैशाच । इनमेसे कुछको तो विवाह कहना भाषाके साथ अन्याय करना-
सा प्रतीत होता है । उदाहरणके लिए, पैशञाचको बलात्कारसे भिन्न मानना
कठिन प्रतीत होता है। स्मृतिकारोने इनको इसीलिए विवाहकी पदवी
दी है कि इनसे जो सन्तान उत्पन्न हो वह वैध मान ली जाय और निरा-
श्रय न रहे । आजकल ब्राह्म ही वास्तविक विवाह माना जाता है । हिन्दू-
मात्रमे, कमसे कम उन लोगोमे जो न्यूनाधिक रूपसे शास्त्रोका पालन करते
हैं, यही प्रचलित है । स्मृतियोने भी इसको ही सबसे श्रेष्ठ और पवित्र बत-
लाया है। परन्तु इसके साथ साथ गान्धर्वकोी भी मान्यता प्राप्त हैं।
यदि कोई स्त्री और पुरुष साथ रहते हो और दम्पती जैसा व्यवहार
करते हो ओर यदि उनका विवाह अन्य किसी कारणसे अवैध न होता हो
तो उनके इस सम्बन्धको विवाह जैसा मान लिया जाता है । गान्धर्व विवाह-
में कन्यादानके लिए कोई स्थान नहीं है ।
यहाँ हमको ब्राह्मविवाह पर ही विचार करना है । इसमें ही वस्तुत'
कन्यादान होता है । विवाहकी यह पद्धति बहुत लम्बी है । इसकी अन्तिम
कड़ी सप्तपदी है ।
कन्यादानसे जो पृण्य होता है वह अक्षय्य और झपरिमेय है । लिग-
पुराणके शब्दों में :
यावन्ति सन्ति रोसाणि, कन्यायाइच तनों पुत्रः ।
तावहष॑ सहस्राणि रद्रलोके.. सहोीयते ॥॥
कन्याके शरीरमे जितने रोम है उतने सहस्रवर्ष कन्याका दाता रुद्वलोकमें
निवास करता है--
मन् कहते है :
दक्ष पूर्वात् परान् वंदयान्, आत्मानं चेकविशकस् ।
ब्राह्मोपुत्र: सुकृतकुनू, सोचयदेवस: पितृन् ॥| (३।३७)
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