पातन्जलयोगसूत्र की संस्कृत - व्याख्याओं का एक आलोचनात्मक अध्ययन | Patanjalayogasutra Ki Sanskrit - Vyakhyaon Ka Ek Aalochanatmak Adhyayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
424
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)| है
पुरातन आात्रार्य में “बाध्य” नामक व्याव्या महीं जिद्यो । योगसूम्रपर यूरो पातात् -
ब्यागां भेजराज की. *राजमात्फ्ड' मामफरवृत्ति है इसे 'मोजयूसि' त्री कहते हा
धोजबूत्ति, योगपराष्य के समान विस्तृत तो नहीं है, किस्तु सूत्रगस पदों के स्पस््टीकरण
में बड़ी सक्षम व्याध्या है । भतेफ स्यतों पर योगभाष्य ते गिम्म अर्ध प्रीतपोधिश करने
के कारण योगसूत्रो' के स्राक्षात् व्यात्यान के रक्ष में पतजील के ग्ते! की सुनिशि्रत
जा से केधग्थ कराने में उसका बहा महल है ।
पोगपूओओं की प्रालात्-ध्य्या के रूप में इन यो प्रसिदत ब्याध्याओं के
भमम्तर भावाखतेश, सागोजोगट्र' कर रामानस्वरयाति फी बृलियों को सोम सामने जाता
हे । शावा गनेश की पृत्ति बहुत लचुकाप और स्तिप्त है । इस बूत्ति' की संता
*पोगदीपिका' है । नागेजीगंट्र के नाम से प्रभात व्रत अव्यस्त सक्षिप्स और
भावागनेशीय ब्रत्लि के वो, और गाध्यांज्रों का अनुकरण' फ रते वाली हैं ।
रामानन्वर्यात फी' मशिप्रमा माम को योगपूत्र ब्त्ति घड़ी हो सुर्कक्षप,्न एव समीक्ोम
शै्ती में लिखी गई व्याध्या है । प्रमके शीततरिका प्रप्तिद््ध योगसूत्र पृत्तियाँ हैं
*योगासिद्वात्तचाखका और 'सूम्रार्थभेधिनी” । इन दोनों व्यात्यानों के रचपिता
मारायणतीर्ष हैं । तारायबतीर्ध ने एक हो उम्य को दो स्याध्याए और वह भी
एक ही प्रवधीत में क्यों लिखी ? इस प्रश्न पर सी अध्याय में आगे प्रफता' शाता
जयिगा । अवरधीन संधुत व्याज्याओं में जा उत्तेषनीय योग्पुत् बखॉस्या शष्ययन पा
विभय बनासे घोरय कही जा सफ्ती है बह है 'धीफृण्णबस्तवायाय' के धारा
विरधित स्वामितारायणभाष्य' 1
। «. भ्री' मवमलांत लक्ष्मी मिरवास चड़क इधारा तजोर से 1961 में प्रकाशित |
४० हीत श्री भावागनेशनद्कृताया पोगदीपिफापा पात॑जलसूुबद त्सी
धाचनपावों वित्तीय!
पृष्पिका 'संमाधिपाद* वमहादिद गंगावर बफ़े हवारा
191 ? ई0 में त्म्पादित मर्भवसागरप्रेस' बाई 7
3 - प्रोमो सख्त पीरोज पामोदरलात गोखामोी दूवारा सम, 1903 में प्रकशित ।
4 -. पोध्मा संस्कृत पीरोज पनारस से 1911 में प्रकशात |
5 - म्योतिषप्रफतशा विशेशरगंज, बनारण सिदी से 1959 $0 में प्रकशीत |
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