श्री लिंगपुराण भाषा | Shri Ling Puran Bhasa

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Shri Ling Puran Bhasa  by गुलाब सिंह - Gulab Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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+पू्वीर्देत ७! वृष पुत्रओःजंगर्त की परिआग्न हउससेस्वाहाःमें ती- 'नश्कीकी के कल्यारी पके अथ तीन पत्र उत्पन्त भंये पे 1 पट | ई८ पा महा ँ पार द %2५ डे एंगः इँ ने तक र्जः ह्सतंर्नीः कहते हैं कि हेग्म॑नी३ेवरों-पंहिले अध्यायंके अन्त में हमने कहाटकि अग्नि के सीने पुत्र भेये उनके नॉम पेंवमोन पावक ओ शुचि ये हैं जिंनमे पंवमार्न: तो मजा धब्न्डा आर :आंदि में संघंप से उत्पत्नेःहुआं !पावेक .विद्य॑त: अंथारत/विजली से निकला ओःशुि संस्य्की:पंभासे भंयाय-तीनो स्वीहिक पत्रे/हे। अब'इसेके:पंत्र पोज: ०१२७० ४० ००5 कीस्सख्प्रासंनोंकिसेबमिंलंकेरं उ5चास भय जोसे यँज्ञों मआराधनं:कियेजीते हेंःओ संवेके संबं तपरची' भतार प्रजाके पति ओ रुद्रस्वेरूप:भये पितर:भी दो प्रेंकारके हैं एकंप्यज्वा/अर्त्थोत्त यज्ञ करते घाले ओर दसरे अयज्ता उन्तम हज्वाओं फा नाम अग्निष्वांसा है ओर दूसरवबेहिपिद कहते हैं। स्वंघाः में अस्निष्वां- ताओ समाससी कन्या: उत्पन्न भंई उसको नाम मेंनी रकेखी गंयां।। वह मेना 5 हिमाटठंयप सेंविवोही गछओ उससे सेनाके: क्रीच मे: दो पुत्र ओ उसा तथा सब ज+ गतकीपव्रेतकरलेहारोगंगा-ये दो कन्या अंई-। मेरे पंवेत की स्वंधानाम खी में सानसी:कन्या धरणी:मार्म भेई।अरूत पान करनेवालेपितर ओ ऋषियों का कुछ अवहम विस्तार सेःकेहँग।:दत्तकी कन्या संतीअधथम रुद्नसें व्याही!गरे फ़िर द् की:निदारकर अपना देह स्ोगकिया:ओ प्रावैती रूपले फ़िर महादेवजीकफेही सं- बकरे:




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