कतरन | Kataran

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Kataran by विभा देवसरे - Vibha Devasare

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गलत इकाइयों 25 देती तब भुमे पूरा विश्वास होता कि कभी तो इस गहृत्थी का योग सही निकलेगा मौसम ददलने के कारण देवा और अनुमा सर्दी खांसी से बहुत परेशान थे बच्चो की पीडा से इडू परेधान थी मैंने पूछा “डॉक्टर बुलालू? गृहस्थी की दोव पेच मे इन्दू काफी अनुभवी हो गई थी बोलो-- एलोपथी से होम्योपेषी दवा अधिक फायदेमद रहेगी कुछ फल ला दोगे तो ज्यादा अच्छा रहेगा / मैं इ-टू से सहमत होता हुआ दवा लेने सिविल लाइस की झोर घल पडा धाम वा अधेरा टुकड़ों मे इधर उधर बिखर रहा था भोडी देर मे ही मे सारे टुक्डे सिमट बर काली पर्तों मे जम जायेंगे मैं अपने मे खोया साइलिल पर घला जा रहा था कि मेरी बगल से सरसराती हुई एक कार निकल गईं मुझे लया कार मे बैठी आइृतिया परिचितन्सी हैं मैंने साइकिल की रफ़्तार तेज कर ली कार प्लाजा के सामने रुकी मैं साइकिल से उतरबर धीमे खलते लगा मैं बहुत खुली हुई आखो से देख रहा था कार से उतरने वाला व्यवित मिश्रा का बास था ओर उसकी बगल में करीव वरीब उससे चिंपदी हुई नौता इस बार मेरे गणित को सही अको हे में देर नही लगी लेकिन मिश्रा वाली इकाई कट कर जीरो हो गई थी के कई दिनों बाद मुझे मिथ्वा मिलः था मेरे गणित के अनुसार उसे जीरो होना चाहिये या लेकिन मुझे ये देखकर कम आइचय नहीं हुआ कि उसमे काफी योग थे उसने मुस्द्े बहुत स्पष्ट बताया कि उसका बास्त बहुत नेक है ओर उसके सम्बधध बॉस के साथ बहुत घनिष्ठ होते जा रहे हैं और ये भी कि उसका प्रमीदन निश्चित है कोहिली को इस बार घास नहीं मिलेगा मिश्रा बहुत आइवस्त था फिर कई दिनों बाद जब मकान बदलने के चक्कर में में मिश्रा से मिला तो उसने मुझसे शाहर की अच्छी लेडी डाक्टर के बारे मे पूछा था नीता का अबाशन कराना चाहता था खच जो भी होगा बास देने को तैय्यार हैं. यहा मेरा गणित फिर गलत इकाइयों पर अटक गया था इस बीच मैंने घर बदल लिया था चार एक महीने हो गये थे मिश्रा का कोई समाचार नहीं मिला एक दिन डिपाटमेटल स्टोर से मैं कुछ




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