रचना - संदर्भ कथा - भाषा | Rachana - Sandarbh Katha - Bhasha

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Rachana - Sandarbh Katha - Bhasha by शशि भूषण - Shashi Bhushan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गोदान' की कथा-भाषा प्रेमचन्द : प्रोवित-भाषा के अत्यंत जागरूक कयाकार : हिन्दी में प्रेमचन्द प्रोवित-भाषा के अत्यंत जागरूक कथाकार हैं। उनका कया- साहित्य भाषा के नजरिये से संवेदनशील मयथार्थता का साहित्य है। उद्दूँ से हिन्दी में आने के कारण उनके आरंभिक उपन्यासों में यद्यपि कुछ कठित झददूँ की झाँकियाँ भी जगह-जगह देखने को मिलती हैं, पर 'गोदान” तक बाते-भातते उनकी उपन्यास-भाषा इस दृष्टि से काफी दूर तक संयमित और सुव्यवस्थित हो जाती है। जीवन-यथार्थ की पकड़ के मायने में वे बड़े संवेदनशील कथाकार हैं। बोलचाल की सादगी से भरे हिन्दी गद्य को प्रवाह देने, जीवन की नाना सुद्रात्मक' और विविध कथ्यात्मक अभिव्यक्ति से भरी हिन्दी के सहज-संप्रेष्प राष्ट्रभापा- रूप का रचाव करने और एक स्तरीय, उन्नत कथाभाषा का स्वभाव निश्चित करने की दृष्टि से प्रेमचन्द को भाषिक शक्ति-क्षमता का महत्त्व हिन्दी-साहित्य में स्थायी है | उन्होंने हिन्दी कथा-साहित्य को जो भाषा मुहैया की है, उसको तर्भी सर्जनात्मक संभावनाओं का स्वयं अपने साहित्य में साथंक प्रयोग-उपयोग भी कर लिया है। 'गोदान' में उतकी यह कथा-भाषा कथ्य की ऋद्दि से कला की सिद्धि तक की भाषा बन गई है । उन्होंने संवेदनशीलता, स्थितिगत “वास्तव की समझ, भाषा और समाज के अन्योन्य संबन्ध की चेतना, शब्दारथ-सजगता भौर विचलन तथा समांतरता जैसे कलात्मक कौशल के सहारे अपनी कथा- भाषा का विन्यास किया है । संवेदनशीलता : प्रेमचन्द भाषा के मायने भें बहुत संवेदनशील कघाकार हैं। शँखों की भाषा की प्रेमचन्द को वड़ी पहचान है। कहीं उतका रचनाकार ईष्याँ-भरी आँखों की भाषा (योदान, पृष्ठ-19) को सामते लाता है, तो कही आँदों में रस भर कर कहने की भाषा (पृष्ड-33) का प्रत्यक्ष कराता है, कहीं मर्म-भरी खाँखों से देखने में--'अव तुम काहे को कभी यहाँ आओगरे' (पृष्ठ 45) की वाचकता स्पष्ट होती है, तो कही सदय भाव से उसकी ओर ताकने का अर्थे




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