एकला चलो रे | Ekala Chalo Re

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : एकला चलो रे  - Ekala Chalo Re

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about भगवतीशरण मिश्र - Bhagwatisharan Mishra

Add Infomation AboutBhagwatisharan Mishra

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
पिताजी से परिचय कराया, उन्हें अपने घर बुलाया और भद यह वया बात है. जो तुम इस तरह उनसे खिची-छिची रह रही हो १” “यह सब ठोक है दोणा और उस समय मैं शायद विशाल से प्यार भी फरती” थी पर इसी बीच शरद मेरे और उनके बीच झा गया। लगातार उसने अपने प्यार की दुह्मइयां देनी आरम्भ की और में घीरे-घीरे उसकी बातों मे श्राती गईं। फिर बात यहां तक पहुंची कि शरद को खुश करने के लिए मैंने विशाल से मिलना और उनकी तरफ देखना भी छोड दिया। और तो और मैंने शरद के कहने पर ही विशाल के कलासों से भी कन्नी काटी और उनके क्लासों के काफी महत्वपूर्ण होने के दाद भी मैं उन्हें छोड़ने को वाघ्य हुई ।” “और तुम्हे यह भी मालूम है कि तुम्हारे उन व्यवहारों का विशाल पर वहुत' बुरा प्रभाव पड़ा और उतका स्वास्थ्य दिनोदिन गिरने लगा था ? बहता “ती तुम्हें यह्‌ भी श्न्दाज़ होगा कि तुम्हारी चिन्ता से श्रपना पिड छूडाने” के लिए ही पिछली छूटिटयों मे वे दाजिलिग चले गए और श्रभी तक नही लौटे । ण्हठा 1! “तब तुम कितनी निष्ठुर हो रेखा 2” #निष्ठुर नही, वीणा। मैं मजबूर हूं | मुझे विशाल से पूरी सहानुभूति है ॥ में कभी उनसे प्यार भी करती थी और मेरा यह सौभाग्य होता कि में उनके चरणों में स्थान प्राप्त करती, पर मुभपर शरद का जादू चल गया है और में उससे झपना पिड नही छुड़ा पा रही ।' “वर, एक बात बताप्रो, दाजिलिंग जाने के पहले विद्याल यहां झाए थे १ ग्ह्हूं ४४ जब 2! “जाने की सुबह । कोई सात बजे 1” ॥उन्होंने क्या कहा २! “तुम तो जानती ही हो झ्राज तक उनसे भेरी कोई विशेष दें नहीं हुई हैं ५ फिर भी भुफे यह स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं कि विशाल जितना सुभसेः प्यार करते हैँ उतना शायद ही कोई व्यवित किसी दुसरे से कर सकता है $ उन्होंने आते ही पूछा था, पिताजी कहां है ?” मैंने कहर, 'कार्यालय गए. हैं 07 उन्होंने फिर कहा, 'उनसे कह देना मैं दाजिलिय जा रहा हूं । शायद दो महीने” बाद झा पाऊ ४”! एकला चलो रे / 27




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now