महानगर | Mahanagar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
136
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about नरेन्द्र नाथ मित्र - Narendra Nath Mitr
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)&
अस्त में सुब्रत को ही कहना पडा 1
प्रियमोपाल की गुडगुड़ी वन््द हो गई । कुछ देर त्तक दे स्तब्ध बैठे
रहे; इसके बाद बोले, 'ऐसी बात तुम्हारी जुबान पर आई कैसे भोम्बल ?
मेरे जिन्दा रहते मजूमदार घराने की बहू नौकरी करेगी ? और में झांसें
बन्द कर देखता रहूंगा ?”
सरोजिनीदेवी बोली, तुम लोग भीतर दही भीतर खिचदी पका रहे
थे, इसकी भनक मुझे मिल गई थी। हा, कर ले बहू नौकरी ! लेकिन
फिर मैं यहां नही रहूंगी। फिर मुर्के पाटलडागा भेज दो ।'
पाटलडागा में सरोजिनीदेयी के बड़े भाई रहते है। भ्रपने उन दोस्तों
की सूची सुद्रत ने दी, जिनकी पत्निया नौकरी करती हैं।
किस्तु प्रियगोपाल टस से मस नही हुए। उन्होंने कहा, 'जो करती है.
वे करें। हम लोगो के खानदान में ऐसा कभी नहीं हुआ और न कभी
होगा।'
सुक्रत भी अपने इरादे में कम नहीं।
सबसे पहले उसने पिता के साथ तक किया । इसके वाद बोला, 'ठीक
है, तव ञ्राप ही बतलाइए, घर का सर्च कैसे चलेगा ? मैं शवितभर काम
करता हूं। एक मिनट भी बैठा नही रहता। किल्तु एक आदमी की नौकरी
से इतना बड़ा परिवार चलाना विसीके भी बूते के बाहर है ॥'
उत्तर मे प्रियगोपाल कुछ बहने जा रहे थे कि हठात् लड़के केः चेहरे
की ओर देसकर रुक गए। हथौड़े की चोट-सी लगी बेटे को बात--
इतना बडा परिवार
भोम्बल के परिवार को उन्होंने ही बडा किया है। पति-पत्नी और
एक छोटा बच्चा | तीन लडके, लडकिया । क्या इसी बात की खरोच दे
महानगर / २३
User Reviews
No Reviews | Add Yours...