एक ही जिन्दगी | Ek Hi Zindagi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
156
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)एक हो जिन्दगी श्र
को ओर जाती हुई बोलो, “तव शायद वे अपनी-अपनी पत्नियों से हो
झगड़ा करेंगे ।” पे
बाप रे ! वह तो और भी भयंकर वात द्वोगो। उस समय घर में
टिकना भी मुश्किल हो जाएगा। लेकिन असलो तथ्य क्या यही है ?
महेन्द्र के मन की जटिलता और अधिक गहरी है। उसको आँखों के
सामने बड़े भाई नरेन्द्र का चेहरा तिर उठा। शादी के पहले जब दोनों
व्यक्ति मेस में रहते ये उस समय भैया महेन्द्र से हर वक्त डॉँट-फटकार
के स्व॒र में बातचीत करता था । महेन्द्र को हालाँकि मन ही मन ऊब
का अहसास होता था मगर वह जबान से कुछ नहों कहता । तभी से
उसके चरित्त में खामोशी और निरीहता का भाव आ गया था । इसका
मतलब यद्द नहों कि वह अन्दर-अन्दर निविकार थां। उसके वाद जब
भैया को शादी हो गई तो महायुद्ध की समाप्ति के पहले ही वह अपने
लिए अलग से किराये का मकान ले वहाँ चला गया। क्षगड़ा-टंढा नहों
हुआ था । एक अनिवार्य घटना की तरह ही भैया महेन्द्व को मेस में
रखकर, किराये का मकान ले देश से भाभी को ले आया था। महेन्द्र
ने सोचा था, भैया अब उसे धर पर बुला लेगा। भैया मे ऐसा फभी
नहीं कहा । भाभी फो ले जाने के बाद, महीने में एक बार, रविवार
को अपने धर पर खाना घिलाने बुलाता था। शुरू में महेन्द्र ने भैया
के आचरण को, अनायास हो अलगाव के तौर पर स्वीकार नहीं किया
था। सन ही मन उसे विस्मय हुआ था, अभिमान हुआ था ओोर तक-
लोफ का भी अहसास हुआ था। लेकिन यह सब वात कभी उसने किसी
को नहीं बताई / निविकार भले हो न हो मगर निरीह भाव से गृहस्यी
के स्वरूप को पहचानने को कोशिश को थी 1
घर के अन्दर मतो और सतु को आवाज बन्द द्वो गई। महेन्द्र
समझ गया, सुरबाला ने जाकर बीच-बचाव किया है। नल को टोंटी
खोल उसने छुल्ला किया । मसूड़े के दांत से दातुन को बीच से चोरकर
काफी देर तक आवाज करते हुए जीभ छीलता रहा। उसके बाद मुँह
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