एक रात का नरक | Ek Rat Ka Narak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
160
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)एक रात का नरक । २१
फिनारे लगी हुई तार पर बेठ गया । उस समय मालूम होता
है लाला मुकुन्दी लाल जी को भी थकावट महसूस हुई । हो
सकता है उन्हें मेरा यों. आराम से बैठना अखरा हो । वे खम्बे
के दूसरी ओर अपने भारी भरकम शरीर के साथ बैठ गये ।
भेरी ओर तार सिंच गयी जैसे चर्सो फिरने पर रेल के सिगनल
की तार और मैं मुंह के बल सड़क पर गरिरता-गिरता बचा ।
इस पर सब हँस पड़े । मुझसे यह अपमान सहन न हो सका 1
दुवारा यहीं बैठ कर, मैने जोर लगाया, पर कहाँ हाथी
ओर कहां चुहिया, तार ज़रा भर भी नीची न हुई। उन्हें
मैरी इस स्पर्धा पर, शायद क्रोध आ गया और उन्होंने तार
पर और भी ज्ञोर दिया। फल यह हुआ कि सम्वा ही टूट
गया। लाला जी उस पर पाँव टिकाये खड़े थे । उनके घुटने
पर चोट भा गयी हम दोनो खिन्न हुए, परन्तु लाला जी ने
भामूली बात है'--कह कर टाल दिया।
उस समय यद्यपि इसे साधारण घटना समझ लिया गया,
पर मेरा माधा उसी समय ठनका था । दिल ने कहा, यह बुरा
अपशकुन हुआ । आज किसी-न*किसी को खैर नहीं । मुझे क्या
मालूम था कि विधांता का नज़ला मुझी पर गिरेगा और मैं ही
उसकी कोप-दृष्टि का भाजन वनूंगा ।
मह॒ता जी के आने पर सव हेंसते-हँसते मेले की खुशी में
रवाना हो गये । सबने अपने-अपने साथी वना लिये मौर वातचीत,
हंसी-ठट्ठा करते चलने लगे। मैं इस पार्टी में नवाग्न्तुक था।
मेरा कोई साथी न बना। उस समय मेरी दृष्टि उस पहाड़ी
कुली पर गयी, जो मज़े से सिर पर फलों की टोकरी लिये चला
जा रहा था। मैंने उसे अपना साथी बना लिया और धीरे-धीरे
ऐसा सान पर चढ़ाया कि वह खुल गया । यहाँ तक कि जब मैंने
उससे कहा, 'यार कोई पहाड़ी गीत ही सुनाओो,” तो उसने
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