आत्मानुशासन | Aatmanushasan
श्रेणी : संदर्भ पुस्तक / Reference book
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
278
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)४ प्रस्तावना-
अध्यात्मरसके आस्वादनसे होसकता हैं; अन्यथा नहीं | ( २ )-जो सुख
संसारम असंभव हैं वे भी इसीके अभ्याससे प्राप्त होते हैं| इसलिये
मोक्षसुखाकांक्षी जरनेकिलिये मी यही अध्यात्म विषय उपयोगी: है ।
(३)-तासरा कारण अध्यात्मरसकी उपयोगिताका यह भी है कि शानवान्
तथा अज्ञानी, सभी इस विषयका मनन कर सकते हैं- ओरः मनन
करनेसे तत्काल भी शांति लाभ करते दीखते हैं | इस प्रकार अध्यात्म
रससे ओत-प्रोत भरे हुए इस ग्रंथके प्रकाशित होनेकी -सबसे अधिक
आवश्यकता थी ।
अधथकारका सहत्व व पारेचया---
इस गंथर्म सब कुछ विलेगा। परंतु जो जितना अधिकारी है
उसको उतना ही मिलेगा । यह ग्रेथ सरलसे सरल व कठिनसे कठिन
है। इस ग्रेथकी पूरा समझनेकेलिये न्याय, व्याकरण व साहित्य तथा
नीति हन सच विषयेकि जाननेवाले पान्रकी आवश्यकता है । और
आत्मोद्धारका उपदेश ते ज्ञानी अज्ञानी, सभीके योग्य भरा हुआ है |
आजकलके संस्क्षत विद्वानोंमें राजर्षि भतेहारिकी काविताका बहुत
आदर है। परंतु गशुणभद्ग॒स्वामीकी इस कवितामें भी कुछ कमी नहीं हैं;
बल्छि कितने ही अंशोमें थह उससे भी चढ-बंढकर है। भर्तृहरिकी
कविता सामान्य उपदेशप्रद है; किंतु यह ग्रंथ सामान्य डपदेशके साथ
'ही साथ जैनसिद्धान्तक्रे गूढ रहस्यको भी बताता है और आदिसे
अंततक मोक्षप्राप्तिका उपाय भी क्रमानुसार दिखाता है।
- ग्रेयवकी सुखबोधकता3--... ६ 7:
इस ,अंथमें सामान्य लोकोक्तियोंका तथा अन्य-पुराणोक्तियोंका
कई जगह उल्ेख है परंतु उन उंक्तियोंकों अपनी धमेकथा' नहीं सम-
झना चाहिये | ओर यह आश्षेप भी करनेकी आवश्यकता नहीं है कि
मिथ्या - पुराणबदनार्भोक्नो यहां जगह क्यों दी! क्योंकि, यह पंथ
पुराण नहीं हे किंतु धर्मोपदेशी है, इसाकिये जहां साधारण जनोंको
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